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नए साल के पहले हफ्ते में ₹1,71,75,92,00,000 फुर्र, भारतीय बाजार से क्यों पैसा निकाल रहे विदेशी निवेशक

नए साल के पहले हफ्ते में ₹1,71,75,92,00,000 फुर्र, भारतीय बाजार से क्यों पैसा निकाल रहे विदेशी निवेशक

नई दिल्ली: विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार के पैसा निकालने का सिलसिला नए साल में भी जारी है। साल के पहले 7 दिनों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने दो अरब डॉलर यानी करीब 1,71,75,92,00,000 रुपये की निकासी की है। अगले कुछ दिनों में कुछ घटनाएं बाजार पर असर डाल सकती हैं, इसलिए विदेशी निवेशक सतर्क रुख अपना रहे हैं। कंपनियों के तीसरी तिमाही के नतीजे आने शुरू हो गए हैं। 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे, 31 जनवरी को फेड की मीटिंग के नतीजे आएंगे जबकि 1 फरवरी को बजट पेश किया जाएगा।खुदरा निवेशक गिरावट में खरीद का मंत्र अपना रहे हैं। दूसरी ओर भारतीय शेयरों में जोखिम लेने की ग्लोबल इनवेस्टर्स की भूख अब कम होती दिख रही है क्योंकि उनका आय अंतर कम हो रहा है और कीमत अब भी ज्यादा है। वैश्विक ब्रोकरेज फर्म HSBC साल 2025 में भारत को न्यूट्रल में डाउनग्रेड करने वाली पहली ब्रोकरेज कंपनी बन गई है। उसने 2025 में मुनाफे में नरमी और ऊंचे मूल्यांकन का हवाला देते हुए सेंसेक्स के लक्ष्य को घटाकर 85,990 कर दिया है। सेंसेक्स दोपहर बाद 12.30 बजे 143.60 अंक यानी 0.19% फीसदी तेजी के साथ 77,763.81 अंक पर ट्रेड कर रहा था। शुरुआती हफ्ते में इसमें काफी उतारचढ़ाव देखने को मिला। यहां हम उन 6 कारणों के बारे में बता रहे हैं जिनके कारण FII भारत में बिकवाली कर रहे हैं:

1) आय में कमी

लगातार 4 साल तक दो अंकों की हेल्दी ग्रोथ के बाद भारतीय कंपनियों की इनकम में पिछली 2 तिमाहियों में गिरावट आई है। तीसरी तिमाही में भी इसके बहुत सुधार की उम्मीद नहीं है। ब्रोकरेज को वित्त वर्ष 2025 के पूरे साल कंपनियों की इनकम में सिंगल डिजिट में बढ़ोतरी की उम्मीद है।

2) कमजोर मैक्रो

वित्त वर्ष 2025 में जीडीपी के लिए भारत सरकार के अग्रिम अनुमानों ने सुस्ती की पुष्टि की है। वित्त वर्ष 2025 के लिए वास्तविक जीडीपी ग्रोथ 6.4% रहने का अनुमान है जो पिछले साल 8.2% था। यह वित्त मंत्रालय के 6.5% के पूर्वानुमान और RBI के 6.6% के अनुमान से कम है। बोफा सिक्योरिटीज इंडिया के राहुल बाजोरिया ने कहा कि इसके कंज्यूमर एंड बिजनस कॉन्फिडेंस, वेतन वृद्धि, कॉर्पोरेट रेवेन्यू, खपत, निवेश, ऋण मांग और राजकोषीय गणित पर कई प्रभाव होंगे।

3) रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर

डॉलर इंडेक्स के लगभग 109 पर होने के साथ भारतीय रुपया गुरुवार को ऑल टाइम लो लेवल 85.93 पर आ गया। करेंसी एक्सचेंज रेट और फॉरेन आउटफ्लो आपस में जुड़े हुए हैं। डॉलर की उच्च मांग के कारण एफआईआई आउटफ्लो से रुपये की कीमत में गिरावट आती है। कमजोर रुपया एफआईआई के लिए मुद्रा जोखिम बढ़ाता है, जिससे संभावित रूप से और अधिक आउटफ्लो हो सकता है।

3) बॉन्ड यील्ड

बेंचमार्क 10-वर्षीय यूएस ट्रेजरी यील्ड 4.73% पर पहुंच गई, जो अप्रैल के बाद से इसका उच्चतम स्तर है। उम्मीद से बेहतर नौकरियों की संख्या और सेवा क्षेत्र के बहुत अच्छे प्रदर्शन के संकेतों के कारण ऐसा हुआ है। विश्लेषकों का कहना है कि इसका मतलब है कि फेड जनवरी में दरों को बनाए रख सकता है, जिससे डॉलर में और मजबूती आएगी और बॉन्ड यील्ड बढ़ेगी।

4) टैरिफ का डर

अमेरिका में इकनॉमिक आउटलुक 20 जनवरी को कार्यभार संभालने के बाद ट्रंप की नीतिगत बदलावों के अंतिम प्रभावों से आकार लेगा। सीएलएसए ने कहा कि ट्रंप के तीन सप्ताह से भी कम समय में कार्यभार संभालने के बाद उनके व्यापार प्रतिबंधों की गंभीरता चीन जैसे निर्यात-केंद्रित उभरते बाजारों के लिए आउटलुक तय कर सकती है। कम गंभीर व्यापार प्रतिबंध चीन जैसे ईएम में निवेश को आकर्षित कर सकते हैं। इसससे भारत का प्रदर्शन व्यापक ईएम रैली में खराब हो सकता है लेकिन इसका उल्टा भी हो सकता है।

5) स्लो रेट कट साइकल

यूएस फेड की पिछले महीने के कमेंट से साफ है कि इस साल बड़े रेट कट की उम्मीद नहीं है। बुधवार को जारी फेड की दिसंबर नीति बैठक के मिनट्स से पता चला कि अधिकारियों को चिंता थी कि डोनाल्ड ट्रंप की प्रस्तावित टैरिफ और आव्रजन नीतियां महंगाई के खिलाफ लड़ाई को लंबा खींच सकती हैं। बाजार मान रहा है कि 2025 में फेड 25 आधार अंक की कटौती कर सकता है।

6) वॉल स्ट्रीट बनाम दलाल स्ट्रीट

बाजार में एक और राय यह है कि अमेरिकी बाजार बहुत सारी वैश्विक पूंजी को सोख रहा है। इससे भारत जैसे उभरते बाजारों से पूंजी बाहर निकल रही है। रॉकफेलर इंटरनेशनल के रुचिर शर्मा के अनुसार, अमेरिकी बाजार का प्रभुत्व विभिन्न देशों की राष्ट्रीय मुद्राओं के कमजोर होने की ओर ले जा रहा है क्योंकि यह अन्य अर्थव्यवस्थाओं से धन को सोख रहा है। उन्होंने कहा कि वैश्विक वित्तीय बाजारों पर अमेरिकी प्रभुत्व चरम स्तर पर पहुंच गया है।

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