Last Updated on November 2, 2025 17:48, PM by Pawan
EPF और EPS दो प्रमुख सरकारी बचत योजनाएं हैं जो भारत के वेतन भोगी कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं। EPF भविष्य के लिए बचत का एक मजबूत मंच है, जबकि EPS पेंशन के रूप में सेवानिवृत्ति के बाद स्थिर आय प्रदान करती है। इस लेख में हम इन दोनों योजनाओं के मुख्य अंतर, योगदान नियम, और इनके लाभों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
EPF क्या है और किसके लिए है?
EPF (Employees’ Provident Fund) सरकार द्वारा संचालित बचत योजना है जो वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए होती है, जो EPFO-कवर किए गए संगठनों में काम करते हैं। इसमें कर्मचारी और नियोक्ता दोनों अपनी वेतन का 12% (बेसिक + महंगाई भत्ता) जमा करते हैं। इस फंड में जमा राशि मिलकर एक लम्बी अवधि के बाद कर्मचारी को रिटायरमेंट या अन्य जरूरी हालात में वापस मिलती है। EPF पर मिलने वाली ब्याज दर लगभग 8.25% होती है और यह टैक्स-फ्री होती है।
EPS क्या है और EPF से कैसे अलग है?
ब्याज, कर और निकासी नियम
EPF पर मिलने वाला ब्याज कर-मुक्त होता है और निकासी में भी कुछ शर्तें होती हैं जैसे सेवा काल पूरा होना या बेरोजगारी की अवधि। EPS योजना में कोई ब्याज नहीं मिलता, लेकिन पेंशन धीरे-धीरे नियमित आय प्रदान करती है। EPF की पूरी राशि निकासी संभव है जबकि EPS का निकासी नियम सेवा वर्षों पर आधारित होता है और मुख्य रूप से पेंशन के रूप में दिया जाता है।
कौन सी योजना आपके लिए उपयुक्त?
EPF आपको लम्बी अवधि की बचत और निवेश का मौका देता है जिसमें आपका और नियोक्ता का योगदान शामिल होता है। वहीं EPS रिटायरमेंट के बाद नियमित मासिक पेंशन प्रदान करता है लेकिन इसमें कर्मचारी का योगदान नहीं होता। आपकी आवश्यकता के अनुसार, दोनों योजनाओं का मिश्रण आपके पेंशन जीवन को सुरक्षित और स्थिर बना सकता है।
EPF और EPS दोनों ही सेवानिवृत्ति की योजना में अहम हैं, जहां EPF से आप लम्बी अवधि की बचत कर पाते हैं और EPS से सुनिश्चित पेंशन आय प्राप्त करते हैं। अपने सेवानिवृत्ति लक्ष्य और सेवा काल के आधार पर उपयुक्त योजना चुनना फायदेमंद रहेगा ।