Economy

योगी मॉडल: 8 साल में 17 लाख करोड़ बढ़ी उत्तर प्रदेश की आय, 5 साल से रेवेन्यू सरप्लस

योगी मॉडल: 8 साल में 17 लाख करोड़ बढ़ी उत्तर प्रदेश की आय, 5 साल से रेवेन्यू सरप्लस

किसी भी सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह जनता के पैसों का सही उपयोग करे। राज्य के पास जितने संसाधन हैं, उनका इस्तेमाल विकास के कामों में हो और आमदनी लगातार बढ़े, तभी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है। इस दिशा में उत्तर प्रदेश ने हाल के वर्षों में बड़ी सफलता हासिल की है।

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट बताती है कि साल 2022-23 में देश के 16 राज्यों ने राजस्व अधिशेष (सरप्लस) की स्थिति प्राप्त की। इनमें उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर रहा है। यानी यूपी की आमदनी उसके खर्च से ज्यादा रही। राज्य ने 37,000 करोड़ रुपये का अधिशेष दर्ज किया है। यह इस बात का सबूत है कि प्रदेश अब वित्तीय अनुशासन के साथ काम कर रहा है।

सरकार की यह सफलता अचानक नहीं आई। इसके पीछे पिछले कुछ वर्षों में किए गए कई सुधार हैं। सबसे अहम सुधार कर व्यवस्था में हुए बदलाव हैं। वर्ष 2017 में लागू जीएसटी (GST) व्यवस्था ने कर संग्रह को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। हाल ही में जीएसटी की दरों में की गई कटौती के बाद उपभोग बढ़ा है और कर राजस्व में भी तेजी की संभावनाएं हैं, जिसका आँकलन भविष्य में होगा।

 

राज्य की आय का बड़ा हिस्सा जीएसटी, वैट और उत्पाद शुल्क जैसे अप्रत्यक्ष करों से आता है। ये कर लोगों की खरीदारी और उपभोग पर आधारित होते हैं। जैसे-जैसे लोगों की आय बढ़ी है और खर्च करने की क्षमता बढ़ी है, वैसे-वैसे सरकार की आमदनी भी बढ़ी है।

पिछले आठ वर्षों में उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था ने बड़ी छलांग लगाई है। वर्ष 2012-13 में प्रदेश की सकल राज्य आय करीब 8 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2016-17 में 12.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंची। यह पांच साल में 4.5 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी थी। जबकि मौजूदा सरकार के समय यह वृद्धि और तेज हुई। 2017-18 में 13.6 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में करीब 29.6 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई है। अगले साल यानी 2025-26 में यह 35 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। पिछली सरकार में यानि अखिलेश यादव के कार्यकाल में यह वृद्धि औसतन प्रतिवर्ष 1 लाख करोड़ रुपये से कम थी। योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में यह वृद्धि प्रतिवर्ष औसतन 2 लाख करोड़ रुपये है। यह राजस्व स्रोतों में रिकॉर्डतोड़ वृद्धि का सबूत है।

राज्य की कर प्राप्तियों में भी यही रफ्तार दिखती है। 2012-13 में सरकार को टैक्स से 54,000 करोड़ रुपये मिले थे। 2016-17 में यह 85,000 करोड़ रुपये तक पहुंचा। लेकिन योगी सरकार के समय 2017-18 में यह 95,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 2,25,000 करोड़ रुपये हो गया। यानी टैक्स राजस्व लगभग चार गुना बढ़ा है।

राज्य की आय में केंद्र सरकार से मिलने वाला हिस्सा भी बड़ा कारक है। उत्तर प्रदेश देश की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है, इसलिए उसे केंद्र के करों में सबसे ज्यादा हिस्सा मिलता है। केंद्र की बेहतर कर नीतियों से राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ी है, जिसका सबसे अधिक लाभ यूपी को मिला है। यही “डबल इंजन सरकार” का फायदा भी है।

इसका असर राज्य के बजट पर साफ दिखता है। 2012-13 में राज्य सरकार का कुल बजट 2 लाख करोड़ रुपये था, जो 2016-17 में 3.46 लाख करोड़ रुपये हुआ। यानी 5 साल में 1.5 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के दौरान यह बजट 2016-17 के 3.8 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में 8 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। यह वृद्धि दर पहले की तुलना में दोगुनी है।

सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार ने टैक्स बढ़ाए बिना यह उपलब्धि हासिल की। न कोई नया कर लगाया गया और न किसी पुराने कर की दर बढ़ाई गई। यह सफलता कर व्यवस्था को मजबूत करने और कर चोरी पर रोक लगाने से मिली है। कुल मिलाकर यह उल्लेखनीय नतीजा गुड गवर्नेंस से मिला है। राजकोष के प्रबंधन में सिर्फ आमदनी बढ़ाना ही नहीं, उसका सही उपयोग भी जरूरी है। सरकार ने इस दिशा में भी अच्छा काम किया है। वेतन, पेंशन और ब्याज जैसे अनिवार्य खर्च कुल बजट का केवल 42.37 प्रतिशत हैं, जबकि कई विकसित राज्यों में यह 50 प्रतिशत से ज्यादा है।

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में गरीब और जरूरतमंद वर्गों की मदद करना भी बड़ी जिम्मेदारी है। इसके बावजूद सब्सिडी का हिस्सा कुल खर्च का केवल 4.4 प्रतिशत है। पंजाब, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में यह 10 से 17 प्रतिशत तक है। इसका मतलब है कि यूपी सरकार ने सामाजिक जिम्मेदारी निभाते हुए भी वित्तीय अनुशासन बनाए रखा है। इस बात के लिए यूपी सरकार की तारीफ होनी चाहिए।

गैर जरूरी खर्चों को नियंत्रित रखने का फायदा यह हुआ कि राज्य के पास विकास के कामों के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध रहा। उत्तर प्रदेश अपने कुल खर्च का करीब 12 प्रतिशत पूंजीगत परियोजनाओं पर खर्च करता है, जो देश के सभी 28 राज्यों में सबसे ज्यादा है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे विकसित राज्यों में यह 4 प्रतिशत से भी कम है। साल 2022-23 में प्रदेश का पूंजीगत व्यय लगभग 1.03 लाख करोड़ रुपये रहा, जो देश में सबसे अधिक है। राज्य की मजबूत वित्तीय स्थिति का एक और प्रमाण यह है कि यूपी का कुल कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद का केवल 30 प्रतिशत से कम है, जबकि पंजाब जैसे राज्यों में यह 46 प्रतिशत तक पहुंच चुका है।

इन सभी प्रयासों का असर निवेश और रोजगार पर साफ दिखाई देता है। सरकार का मानना है कि जब सरकार खुद निवेश करती है, तो निजी क्षेत्र भी आगे आता है। बुंदेलखंड इसका उदाहरण है। वहाँ एक्सप्रेसवे, रक्षा कॉरिडोर और औद्योगिक प्राधिकरण बनने के बाद उत्तर प्रदेश में, निजी निवेश में तेजी आई है। यही निवेश अब उत्पादन और रोजगार के नए अवसर बना रहा है। निवेश और उत्पादन में वृद्धि के कारण प्रदेश में रोजगार तेजी से बढ़ा है। अब बेरोजगारी दर 3 प्रतिशत से कम है, जबकि देश का औसत लगभग 5 प्रतिशत है। गरीब परिवारों की संख्या में तेजी से कमी आई है। बहुआयामी निर्धनता कम करने में उत्तर प्रदेश देश में पहले स्थान पर है।

कभी बीमारू कहा जाने वाला उत्तर प्रदेश अब वित्तीय अनुशासन और तेज विकास का उदाहरण बन गया है। निवेश, उत्पादन और रोजगार की यह रफ्तार आने वाले वर्षों में राज्य को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का रास्ता दिखा रही है। यही उत्तर प्रदेश सरकार का मूल मंत्र है- मूल मंत्र यानि “मजबूत वित्त, तेज विकास और हर परिवार के लिए सम्मानजनक जीवन”।

लेखक: अरुणेश सिंह, अर्थशास्त्री

Source link

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

To Top