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SBI के रिसर्चर्स पर लगा RBI के विशेषज्ञों की रिपोर्ट हूबहू कॉपी करने का आरोप, सोशल मीडिया पर हुई बहस

SBI के रिसर्चर्स पर लगा RBI के विशेषज्ञों की रिपोर्ट हूबहू कॉपी करने का आरोप, सोशल मीडिया पर हुई बहस

Last Updated on October 25, 2025 17:56, PM by Khushi Verma

सोशल मीडिया पर बहसबाजी, आरोप-प्रत्यारोप आम हो चुके हैं। लेकिन जब मसला देश के दो प्रमुख वित्तीय संस्थानों का हो, तो बात बड़ी हो जाती है। ताजा वाकया है भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के बीच का। दरअसल RBI की मौद्रिक नीति शाखा के एक सदस्य ने SBI के अर्थशास्त्रियों पर प्लैजरिज्म का आरोप लगाया है। प्लैजरिज्म का मतलब है- साहित्यिक चोरी यानि कि किसी और के काम, लेख, रिसर्च, रचना या विचारों को अपने नाम से पेश करना।

SBI के विशेषज्ञों की टीम पर आरोप है कि उन्होंने RBI के विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट से निष्कर्षों की नकल की है। RBI के सार्थक गुलाटी ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट डाली है। इसमें उन्होंने बताया कि कैसे SBI की टीम ने सभी महत्वपूर्ण डेटा को ग्राफ और चार्ट सहित कॉपी कर लिया।

क्या कहना है गुलाटी का

RBI में असिस्टेंट जनरल मैनेजर गुलाटी का कहना है, “फाइनेंशियल और इकोनॉमिक रिसर्च कम्युनिटी के प्रोफेशनल्स होने के नाते, हम अपने एनालिसिस में मौलिकता (originality), श्रेय (attribution) और ईमानदारी (integrity) पर निर्भर करते हैं। इसी कारण यह गंभीर चिंता की बात है कि हाल की SBI Ecowrap रिपोर्ट्स में RBI की मॉनेटरी पॉलिसी रिपोर्ट्स के अंशों की हूबहू नकल दिखाई दे रही है, कोई श्रेय/क्रेडिट भी नहीं दिया गया है।’

गुलाटी ने कथित प्लैजरिज्म के प्रमुख उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा, “जुलाई 2025 की इकोरैप रिपोर्ट में RBI की अप्रैल 2025 की मॉनेटरी पॉलिसी रिपोर्ट के चैप्टर 2: प्राइस एंड कॉस्ट के बड़े हिस्से को पैराग्राफ दर पैराग्राफ दोहराया गया है, जिसमें प्रमुख चार्ट और नैरेटिव शामिल हैं। अक्टूबर 2025 की इकोरैप रिपोर्ट में भी RBI की अक्टूबर 2025 की मॉनेटरी पॉलिसी रिपोर्ट की भाषा और स्ट्रक्चर को कॉपी किया गया है, लेकिन इसमें भी कोई श्रेय नहीं दिया गया है।”

रिसर्च एथिक्स और शैक्षणिक मानदंडों की उपेक्षा है ऐसा काम

गुलाटी ने अपनी पोस्ट में आगे लिखा है, ‘इस तरह की चीजों के बारे में बात करना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि, “यह ओरिजिनल इंस्टीट्यूशनल रिसर्च की वैल्यू को कम करती हैं। यह रिसर्च एथिक्स और शैक्षणिक मानदंडों को लेकर बड़े पैमाने पर उपेक्षा को दर्शाता है। मैं इसे जागरूकता बढ़ाने और पारदर्शिता, एट्रीब्यूशन और इकोनॉमिक व फाइनेंशियल रिसर्च में हमें जिन स्टैंडर्ड्स को बरकरार रखना चाहिए, उन पर बातचीत शुरू करने के लिए शेयर कर रहा हूं। रीडर्स को यह स्पष्ट होना चाहिए कि वे जो विचार पढ़ रहे हैं, वे वास्तव में कहां से आए हैं। हालांकि, रिसर्चर्स और एनालिस्ट्स के रूप में, आपके काम, आपकी राइटिंग, आपके विचारों, आपके एनालिसिस को सार्वजनिक चर्चा का विस्तार करते और भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में कहानी को आकार देने में मदद करते देखना हमेशा एक्साइटिंग होता है।”

SBI की ओर से क्या है जवाब

SBI के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष के नेतृत्व वाली टीम इकोरैप रिपोर्ट पब्लिश करती है। घोष प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद और 16वें वित्त आयोग के सदस्य भी हैं। SBI ने गुलाटी के सभी आरोपों को खारिज किया है। इकोनॉमिस्ट और घोष की टीम के सदस्य डॉ. तपस परिदा ने भी लिंक्डइन पर एक पोस्ट डाली है। उन्होंने लिखा है कि जहां तक SBI की अक्टूबर 2025 की इकोरैप में केंद्रीय बैंक की टिप्पणियों संग भाषा और संरचनात्मक समानताओं की बात है, हमने टिप्पणियों को लेटेस्ट डेटा के साथ अपडेट किया है। साथ ही उसी पब्लिकेशन में अपनी टेबल्स में केंद्रीय बैंक को सोर्स के रूप में एक्नॉलेज किया है, यानि कि क्रेडिट दिया है। इससे इसकी मौलिकता की मुहर लगती है। यह अपने आप में इस बात का सबूत है कि हम अनुचित श्रेय लेने से बचने, और जहां जरूरी हो वहां खुलासे करने के अपने सिद्धांत पर कायम हैं। हमारा उद्देश्य न्याय और नैतिकता के व्यापक सिद्धांतों को बढ़ावा देना है।

परिदा ने आगे लिखा, ‘हल्के-फुल्के अंदाज में कहें तो यह प्लैजरिज्म नहीं है, बल्कि बेहतर समझ के लिए एक महान विचार का रीप्रोडक्शन मात्र है। SBI रिसर्च में हमारा मानना ​​है कि अच्छी रिसर्च, जो यकीनन एक टीम वर्क है, उभरकर सामने आनी चाहिए और एक स्वस्थ बहस और ​संवाद को जन्म देना चाहिए, उन बंद घेरों से कहीं आगे बढ़कर जो हमारे महान राष्ट्र को समृद्धि और प्रगति की ओर ले जाते हैं।’

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