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क्या सिल्वर में आ सकता है 1980 जैसा क्रैश: तब हंट ब्रदर्स के कारण आई थी गिरावट; इस साल तीन वजहों से दोगुने हुए दाम

क्या सिल्वर में आ सकता है 1980 जैसा क्रैश:  तब हंट ब्रदर्स के कारण आई थी गिरावट; इस साल तीन वजहों से दोगुने हुए दाम

Last Updated on October 22, 2025 8:46, AM by Pawan

 

1980 की बात है। चांदी की कीमत 2 डॉलर प्रति औंस से बढ़कर 48 डॉलर तक पहुंच गई। पर यह हुआ कैसे? इसके पीछे थे अमेरिका के हंट ब्रदर्स।

 

दुनिया की चांदी का एक तिहाई हिस्सा इन दो भाइयों की जेब में था। नेल्सन बंकर हंट और विलियम हर्बर हंट ने चांदी को 700% से ज्यादा बढ़ा दिया।

ये हंट ब्रदर्स के अमीर बनने की कोई साधारण कहानी नहीं है। इसमें शामिल है लालच, साजिश और एक ऐसा क्रैश जिसे सिल्वर थर्सडे कहा जाता है।

हंट ब्रदर्स की ये कहानी आज हम इसलिए बता रहे हैं क्योंकि बीते 10 महीने में चांदी के दाम दोगुने हो चुके हैं। ये ₹86 हजार रुपए प्रति किलो से बढ़कर ₹1.70 लाख पहुंच चुकी है।

तो क्या अब चांदी में वैसा ही फॉल आ सकता है, जैसा 1980 के दशक में आया था? चांदी के भाव में आई तेजी की वजहें क्या है? हंट ब्रदर्स की स्टोरी से इसे समझते हैं..

चैप्टर 1: शुरुआत

हंट ब्रदर्स अमीर परिवार से आते थे। उनके पिता हरॉल्डसन लेफायेट हंट गरीब परिवार में पैदा हुए, लेकिन 22 साल की उम्र में बिजनेसमैन बन गए। वह कॉटन की खरीद-बेच करते थे।

जल्दी ही उनका फोकस ऑयल पर शिफ्ट हो गया, जिसमें उन्होंने अरबों डॉलर की कमाई की। पिता की मौत के बाद हंट ब्रदर्स ने अरबों डॉलर का फैमिली बिजनेस संभाला।

विलियम हर्बर्ट हंट (बाएं) और नेल्सन बंकर हंट ने मिलकर सिल्वर प्राइस बढ़ाए थे।

विलियम हर्बर्ट हंट (बाएं) और नेल्सन बंकर हंट ने मिलकर सिल्वर प्राइस बढ़ाए थे।

चैप्टर 2: पपेट मास्टर

दशक के आखिर में डॉलर कमजोर हो रहा था और हाइपरइन्फ्लेशन की भविष्यवाणी थी। ऐसे में हंट ब्रदर्स का फोकस सिल्वर की तरफ शिफ्ट हो गया।

उन्होंने फिजिकल सिल्वर जमा करना शुरू किया और सिल्वर फ्यूचर्स के कॉन्ट्रैक्ट्स खरीदे। उन्हें यकीन था कि सिल्वर की वैल्यू आसमान छू लेगी।

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए कैश सेटलमेंट लेने की बजाय, उन्होंने फिजिकल सिल्वर डिलीवर करवाया। ऐसा कम ही लोग करते थे। 70 के दशक की शुरुआत में जब हंट ब्रदर्स ने सिल्वर खरीदना शुरू किया, तो कीमत 2 डॉलर प्रति औंस थी। 1979 तक ये 6 डॉलर पहुंच गई।

हंट ब्रदर्स के पास 100 मिलियन औंस से ज्यादा सिल्वर था। हंट ब्रदर्स सिल्वर के पपेट मास्टर बन चुके थे। यानी, वो अपने हिसाब से कीमतों को बढ़ा रहे थे।

इससे सिल्वर मार्केट में सप्लाई की दिक्कतें बढ़ने लगीं। दिसंबर 1979 में सिल्वर की कीमत 25 डॉलर प्रति औंस और 1980 में 50 डॉलर प्रति औंस पहुंच गई। लेकिन हंट ब्रदर्स ने उधार लेकर सिल्वर खरीदना जारी रखा।

हंट ब्रदर्स ने 1970 के दशक में फिजिकल सिल्वर जमा करना शुरू किया था।

हंट ब्रदर्स ने 1970 के दशक में फिजिकल सिल्वर जमा करना शुरू किया था।

चैप्टर 3: सिल्वर थर्सडे

हंट ब्रदर्स का प्लान बिल्कुल ठीक चल रहा था, लेकिन कमोडिटी एक्सचेंज, इंक. यानी, COMEX के दखल ने सब कुछ बदल दिया। सिल्वर के पीक से एक हफ्ते पहले 7 जनवरी 1980 को COMEX सिल्वर रूल 7 लाई। इसमें मार्जिन पर कमोडिटी खरीदने पर पाबंदियां लगा दी गई।

इससे हंट ब्रदर्स के लिए ब्रोकरेज से उधार लेकर सिल्वर खरीदना मुश्किल हो गया। इससे हंट ब्रदर्स की ताकत कमजोर पड़ने लगी। अब आती है वो तारीख जिसे सिल्वर थर्सडे कहा जाता है। 27 मार्च 1980 को हंट ब्रदर्स मार्जिन कॉल मिस कर गए। सिल्वर एक ही दिन में 50% से ज्यादा गिर गया। दोनों भाई बैंकरप्ट हो गए।

  • मार्जिन: जब आप ब्रोकर से उधार लेकर कुछ खरीदते हैं, तो आपको कुछ पैसे पहले ही जमा करने पड़ते हैं। ये “मार्जिन” होता है। मान लीजिए आप 100 रुपए का सामान खरीदना चाहते हैं, लेकिन आपके पास सिर्फ 20 रुपए हैं। ब्रोकर बाकी 80 उधार देता है। यहां 20 रुपए “मार्जिन” है।
  • मार्जिन कॉल: अगर बाजार में चीजों की कीमत गिरने लगे तो निवेश की वैल्यू कम हो जाती है। ब्रोकर को डर लगता है कि अगर और नुकसान हुआ, तो उधार का पैसा डूब सकता है। इसलिए वे आपको तुरंत और पैसे जमा करने के लिए कहते हैं। इसे मार्जिन कॉल कहते हैं।
  • अगर मार्जिन कॉल मिस हो जाए: अगर आप पैसे नहीं जमा कर पाते तो ब्रोकर आपकी सारी होल्डिंग जबरदस्ती बेच देता है। इससे बाजार में कीमत गिर जाती है। हंट ब्रदर्स के साथ भी ऐसा ही हुआ था। जब चांदी की कीमत गिरने लगी तो ब्रोकर ने उनसे पैसे मांगे, लेकिन वो और पैसे नहीं दे पाए।
27 मार्च 1980 को सिल्वर के दाम एक ही दिन में 50% से ज्यादा गिर गए थे।

27 मार्च 1980 को सिल्वर के दाम एक ही दिन में 50% से ज्यादा गिर गए थे।

चैप्टर 4: क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन

इस क्रैश के बाद हंट ब्रदर्स के लिए मुसीबतें बढ़ गईं। उनके खिलाफ क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन शुरू हुआ। 1986 में उन्होंने अपनी कंपनी के दिवालिया होने की घोषणा की। 1988 में पर्सनल बैंकरप्शी भी घोषित की।

1988 में न्यूयॉर्क की जूरी ने हंट ब्रदर्स को ऑर्डर दिया कि वे पेरू सरकार की मिनरल मार्केटिंग कंपनी को 130 मिलियन डॉलर से ज्यादा का भुगतान करें, क्योंकि क्रैश से उस कंपनी को भारी नुकसान हुआ था।

कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग कमीशन ने दोनों भाइयों पर 10-10 मिलियन डॉलर का फाइन भी लगाया। सिल्वर रिजर्व्स को मैनिपुलेट करने के लिए ट्रेडिंग करने से हमेशा के लिए बैन कर दिया।

चैप्टर 5: फ्यूचर

इतिहास में सिल्वर में दो बार बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। 1980 में और 2011 में। 2011 में चांदी 31 साल बाद 50 डॉलर प्रति औंस के करीब पहुंच गई थी। लेकिन उसके बाद ये तेजी से गिरने लगीं और 26 डॉलर प्रति औंस तक लुढ़क गईं। ये गिरावट स्पेकुलेशन, रेगुलेटरी ऐक्शन और ग्लोबल फीयर्स के कारण आई थी।

अब, दस साल से ज्यादा समय के बाद, चांदी का भाव फिर से 50 डॉलर प्रति औंस को क्रॉस कर दिया है। ऐसे में, कई लोगों के मन में सवाल है कि क्या आज के समय में सिल्वर में इसी तरह की गिरावट आ सकती है?

जानकार कहते हैं कि सिल्वर प्राइसेस में बड़े उतार-चढ़ाव आज के समय में भी देखने को मिलते हैं, लेकिन सिल्वर थर्सडे के बाद लगाए गए सेफगार्ड्स के कारण इतने बड़े स्केल पर मार्केट मैनिपुलेशन आसान नहीं है।

सिल्वर की वैल्यू को ड्राइव करने वाले फंडामेंटल्स भी हंट के जमाने से काफी बदल चुके हैं। इंडस्ट्रियल डिमांड ट्रेडिशनल फोटोग्राफी से आगे बढ़कर क्रूशियल मॉडर्न टेक्नोलॉजीज में फैल गई है। सोलर पैनल्स में फोटोवोल्टेइक सेल्स के लिए सिल्वर का भारी मात्रा में इस्तेमाल होता हैं।

अभी चांदी में जो तेजी आई है उसकी तीन बड़ी वजहें हैं…

  • फेस्टिव सीजन: भारत दुनिया में चांदी के सबसे बड़े कंज्यूमर्स में से एक है। दिवाली-धनतेरस पर सोना-चांदी खरीदना शुभ माना जाता है। इससे चांदी की डिमांड बढ़ी है।
  • इंडस्ट्रियल डिमांड: चांदी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल सोलर फैक्ट्रियों में होता है। इसके अलावा AI इंडस्ट्री और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में भी चांदी का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है।
  • सप्लाई की कमी: चांदी की मांग तो बढ़ रही है, लेकिन इसकी सप्लाई में रुकावट आ रही है। कुछ देशों में पर्यावरण नियम या खदान बंद होने से प्लान्ड माइनिंग कम हो गई है।

एनालिस्टों का कहना है कि 2025 में आई कीमतों की तेजी स्पेकुलेटिव बबल नहीं है। आज इंडस्ट्रियल डिमांड और इन्फ्लेशन हेजिंग से कीमते बढ़ी है। इसलिए, चांदी की कीमतों में थोड़ा बहुत करेक्शन आ सकता है, लेकिन 1980 और 2011 जैसे शार्प क्रैश का रिस्क अब कम है।

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