Markets

शेयर की खरीद की तारीख और उनके ट्रांसफर की तारीख के बीच वित्त वर्ष बदल जाए तो क्या होगा?

शेयर की खरीद की तारीख और उनके ट्रांसफर की तारीख के बीच वित्त वर्ष बदल जाए तो क्या होगा?

Last Updated on June 20, 2025 17:58, PM by

सेबी ने प्रीतिश नंदी कम्युनिकेशंस (पीएनसी) मामले में एक गाइडेंस नोट जारी किया है। इससे एक ऐसे मसले पर स्थिति साफ हो गई है, जिसे लेकर काफी समय से उलझन बनी हुई थी। सेबी यह स्पष्ट किया है कि किसी कंपनी का अधिग्रहण उस तारीख से प्रभावी माना जाएगा, जिस तारीख को कंपनी के टेकओवर का एग्रीमेंट हुआ है। हालांकि, सेबी यह गाइडेंस इनफॉर्मल है। लेकिन, इससे बड़ी मदद मिलने की उम्मीद है। इसमें कहा गया है कि शेयरों के अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने या वोटिंग राइट्स से नहीं बल्कि टेकओवर के नियमों के तहत अधिग्रहण के पीछे का मकसद सबसे अहम होगा।

पीएनएसी ने एक मामले में सेबी से गाइडेंस मांगा था

दरअसल, पीएनसी ने एक खास मामले में सेबी से गाइडेंस मांगा था। प्रमोटर ग्रुप की एक कंपनी Ideas.Com ने PNC में  4.87 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए तीन ट्रांजैक्शन किए थे। ये ट्रांजेक्शन 26, 27 और 28 मार्च, 2025 को हुए। स्टॉक एक्सचेंजों ने भी इसे नोटिफाय कर दिए। लेकिन, 29, 30 और 31 मार्च को स्टॉक मार्केट में छुट्टी होने की वजह से शेयर हिस्सेदारी खरीदने वाली कंपनी के अकाउंट में 31 मार्च तक ट्रांसफर नहीं हो पाए। 31 मार्च वित्त वर्ष का आखिरी दिन था।

 

सेबी के गाइडेंस में क्या कहा गया?

कॉर्पोरेट प्रोफेशनल्स के पवन कुमार विजय ने कहा, “सेबी के गाइडेंस से टेकओवर कोड के प्रिंसिपल की पुष्टि हो गई है। वोटिग राइट्स वाले शेयरों को खरीदने के पीछे का मकसद सबसे बड़ा फैक्टर है, न कि शेयरों का वास्तिवक ट्रांसफर जिससे ओपन ट्रिगर होता है। सेबी के इस बारे में स्पष्टीकरण पेश करने के बाद नियमबद्ध व्यवस्था को मजबूती मिली है।” उन्होंने यह भी कहा कि अगर शेयर बाजार से खरीदे जाते हैं तो खरीदने वाले को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ब्रोकर को ऑर्डर प्लेस करने से पहले पब्लिक अनाउंसमेंट होना चाहिए।

यह समस्या क्यों पैदा हुई?

पीएनसी के मामले में शेयरों का ट्रांसफर रजिस्ट्रार एंड ट्रांसफर एजेंट्स के पास नहीं दिख रहा था, क्योंकि शेयरों का ट्रांसफर अकाउंट में 2 अप्रैल, 2025 को हो पाया। चूंकि नया वित्त वर्ष शुरू हो गया था, जिससे यह संदेह पैदा हो गया कि शेयरों के इस अधिग्रहण को FY25 में माना जाएगा या FY26 में माना जाएगा। चूंकि प्रमोटर ग्रुप की कंपनी FY26 में और 5 फीसदी शेयर हासिल करना चाहती थी, जिससे यह सवाल और अहम हो गया कि क्या पहले खरीदे गए शेयर से जुड़े ट्रांजेक्शन FY25 में माने जाएंग या FY26 में माने जाएंगे।

सेबी के गाइडेंस पर सवाल

फिनसेक लॉ एडवाइजर्स के पार्टनर अनिल चौधारी ने कहा, “मेरे हिसाब से नियमों का निकाला गया यह मतलब गलत है। गाइडेंस में कहा गया है कि सबसे अहम यह है कि शेयरों को खरीदने के लिए दिखाई गई दिलचस्पी की तारीख कौन सी थी और कब ऑर्डर प्लेस किया गया। लेकिन, सिर्फ ऑर्डर प्लेस करने से शेयर खरीदने वाले को वोटिंग राइट्स नहीं मिल जाते। हमारी कंपनी ने आर सिस्टम्स मामले में भवोक त्रिपाठी का केस लड़ा था, जिसमें सेबी ने यह आदेश पारित किया है जिस तारीख को वोटिंग राइट्स का हक मिल जाए उस तारीख को ही डेट ऑफ ट्रिगर माना जाएगा न कि पर्चेज ऑर्डर की तारीख को माना जाएगा।”

सेबी के गाइडेंस का मतलब क्या?

नियमों के मामले में किसी तरह का संदेह होने पर इंफॉर्मल गाइडेंस से काफी मदद मिल जाती है। लेकिन, इसे कानूनी आधार हासिल नहीं होता। कोई भी रेगुलेटेड एंटिटी 25,000 रुपये की फीस चुकाकर सेबी से इफॉर्मल गाइडेंस मांग सकती है।

Source link

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

To Top