Last Updated on June 19, 2025 7:39, AM by
सेबी (Sebi) की बोर्ड बैठक समाप्त हो चुकी है और इसमें सेबी ने कुछ अहम फैसले लिए हैं. यह फैसले स्टार्टअप के आईपीओ, सरकारी कंपनियों की डीलिस्टिंग और मर्चेंट बैंकरों से जुड़े हैं. सेबी ने कई नए नियम बनाए हैं और कई पुराने नियमों को बदला है. आइए जानते हैं सेबी की बैठक में हुए क्या-क्या अहम फैसले.
Startup IPO पर क्या हुए फैसले?
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- SEBI ने IPO नियमों में ढील दी, कंपनियों को मिलेगी राहत.
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- CCS से बदले शेयरों को भी अब बिना 1 साल होल्ड किए बेचा जा सकेगा.
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- अब और निवेशक Offer for Sale में हिस्सा ले सकेंगे, शेयर लिक्विडिटी बढ़ेगी.
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- Reverse Flipping कंपनियों को IPO में छूट, भारत लौटकर लिस्टिंग आसान.
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- Promoter ग्रुप के और सदस्य भी MPC में CCS शेयर शामिल कर सकेंगे.
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- बैंक, AIF और विदेशी निवेशक अब MPC में अपने CCS शेयर गिनवा सकेंगे.
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- Founders को ESOP जैसे शेयर IPO के बाद रखने की छूट मिली.
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- DRHP से 1 साल पहले मिले ESOP होंगे वैध, प्रमोटर भी रख सकेंगे.
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- SEBI ने कहा– नए नियमों से फाउंडर्स और निवेशकों को सहूलियत.
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- मार्च 2025 की पब्लिक कंसल्टेशन के बाद लिए गए ये अहम फैसले.
SEBI का दूसरा एजेंडा
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- अब DRHP फाइल करने से पहले प्रमोटर और बड़े शेयरहोल्डर्स को डिमैट जरूरी.
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- प्रमोटर, KMP, QIB, एम्प्लॉयी समेत 10 तरह के शेयरहोल्डर्स पर डिमैट नियम लागू.
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- SEBI का दावा– डिमैट से फ्रॉड, शेयर लॉस और लीगल झगड़े होंगे कम.
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- QIP डॉक्युमेंट अब छोटा और सरल होगा ताकि दोहराव से बचा जा सके.
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- अब QIP में सिर्फ ज़रूरी रिस्क और कंपनी का सारांश देना होगा.
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- 90% से ज्यादा सरकारी हिस्सेदारी वाले PSUs को डीलिस्टिंग नियमों में छूट मिलेगी.
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- कम ट्रेडिंग वाले PSUs को डीलिस्टिंग के लिए आसान रूट मिलेगा। ऐसी कंपनियों पर अब 60 दिन की प्राइस एवरेज शर्त लागू नहीं होगी.
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- सभी फैसले अप्रैल–मई 2025 की पब्लिक कंसल्टेशन के बाद लिए गए.
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- SEBI की PMAC समिति ने सार्वजनिक सुझावों के बाद किए बदलाव.
सरकारी कंपनियों की डीलिस्टिंग आसान
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- सरकारी कंपनियों के लिए SEBI का नया डीलिस्टिंग नियम.
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- दो-तिहाई शेयरधारकों की मंज़ूरी की शर्त हटी.
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- डीलिस्टिंग केवल फिक्स प्राइस पर होगी.
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- फ्लोर प्राइस से कम से कम 15% ज़्यादा होना होगा ऑफर प्राइस.
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- फ्लोर प्राइस तय करने के तीन विकल्प – जो सबसे ज़्यादा हो.
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- शेयर न बेचने वालों की रकम स्टॉक एक्सचेंज अकाउंट में जाएगी.
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- 7 साल तक निवेशक कर सकेंगे क्लेम.
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- 7 साल बाद बचे पैसे IEPF को ट्रांसफर होंगे.
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- मई 2025 की पब्लिक कंसल्टेशन के बाद प्रस्ताव तैयार.
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- यह सरकारी बैंक, NBFC और इंश्योरेंस के लिए नियम नहीं है.
SEBI ने बदले मर्चेंट बैंकरों के नियम
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- अब दो कैटेगरी में बंटेंगे मर्चेंट बैंकर.
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- कैटेगरी 1: IPO से लेकर टेकेओवर तक की पूरी छूट. कैटेगरी 1 के लिए कम से कम ₹50 करोड़ नेटवर्थ ज़रूरी.
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- कैटेगरी 2: सिर्फ सलाह और डॉक्युमेंटेशन जैसे काम. कैटेगरी 2 के लिए ₹10 करोड़ नेटवर्थ का नियम.
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- अब रेगुलेटेड और नॉन-रेगुलेटेड काम एक साथ कर सकेंगे.
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- अंडरराइटिंग लिमिट भी तय — नेटवर्थ का 20 गुना तक.
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- कंप्लायंस ऑफिसर के लिए अब 5 साल का अनुभव ज़रूरी.
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- कंपनी में 0.1% से ज्यादा शेयर हो तो फैसला नहीं ले सकेंगे.
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- SEBI का मकसद पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है.
REITs और invits पर क्या बोला सेबी
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- REITs और InvITs के नियमों में बदलाव से निवेशकों के लिए ‘Ease of Doing Business’ बढ़ेगा.
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- अब Sponsor और Investment Manager जैसे जुड़े पक्ष, भले ही QIB हों, ‘Public’ नहीं माने जाएंगे.
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- यह बदलाव ‘Public Unit Holding’ की सही गणना सुनिश्चित करने के लिए किया गया है.
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- Holdco को अब अपने नुकसान को SPV से मिले Cash Flow से एडजस्ट करने की छूट मिलेगी.
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- पहले Holdco को SPV से मिली 100% राशि आगे भेजनी होती थी — अब नुकसान एडजस्ट कर सकेगा.
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- रिपोर्टिंग की टाइमलाइन अब Financial Results की रिपोर्टिंग से जोड़ी जाएगी.
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- पहले हर रिपोर्ट की अलग-अलग समयसीमा थी — अब एक जैसी टाइमलाइन लागू होगी.
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- Private InvITs के लिए Primary Market में निवेश की न्यूनतम सीमा घटकर ₹25 लाख हुई.
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- पहले ₹1 करोड़ से ₹25 करोड़ की लिमिट थी — अब Secondary Market की तर्ज पर लिमिट ₹25 लाख हुई.
