Cheap Chinese Imports: चीन ने कुछ दिन पहले रेयर अर्थ मेटल्स यानी धरती के दुर्लभ खनिजों को निर्यात पर बैन लगाकर दुनिया को बड़ा झटका दिया। इससे इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और डिफेंस इक्विपमेंट की सप्लाई प्रभावित होने की आशंका है। साथ ही, इनकी कीमतों में भी उछाल आ सकता है। अब चीन एक बार फिर कई देशों की मुश्किल बढ़ा सकता है। हालांकि, इस बार दिक्कत महंगाई बढ़ने की नहीं, बल्कि घटने की है। वो भी हद से ज्यादा।
अब क्या कर रहा है चीन?
चीन में उत्पादक कीमतें पिछले दो साल से नीचे गिर रही हैं, यानी उत्पादन महंगा नहीं हो रहा। इसके बावजूद चीन ने अपनी मैन्युफैक्चरिंग दोगुनी कर दी है। इससे एशिया के कई देशों में सस्ते चीनी माल पट गए हैं, क्योंकि कंपनियों को अपना सामान खपाना है।
यह कई देशों की आम जनता के लिए राहत की बात है, क्योंकि उन्हें सस्ते उत्पाद मिल रहे हैं। लेकिन, इससे स्थानीय उद्योगों के चौपट होने का खतरा भी है, जो ज्यादातर देशों की अर्थव्यवस्था की बुनियाद होते हैं।
70% तक दे रहे डिस्काउंट
CNBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विन्सेंट शुए सिंगापुर में एक ऑनलाइन किराना व्यवसाय चलाते हैं। वे ताजी सब्जियां, कैन्ड फूड और आसानी से पकाने वाले पैकेज्ड आइटम स्थानीय ग्राहकों को बेचते हैं। उनकी कंपनी Webuy Global अमेरिका में Nasdaq पर लिस्टेड है। शुए ज्यादातर चीनी सप्लायर्स से सामान मंगाती है। पिछले साल से चीन के सप्लायर्स 70% तक भारी छूट दे रहे हैं, क्योंकि उनके पास हद से ज्यादा माल जमा हो गया है।
चीन में गलाकाट प्रतिस्पर्धा
चीन के घरेलू बाजार में आपसी प्रतिस्पर्धा चरम पर है। इसलिए बड़े फूड और ड्रिंक निर्माता को भी अपनी इन्वेंटरी कम करने में मुश्किल हो रही है। दुनिया के कई देशों को चीनी सामान की बाढ़ से चिंता है और उन्होंने चीन से आयात पर रोक या ड्यूटी लगानी शुरू कर दी है।
वहीं, मुद्रास्फीति से जूझ रहे देशों के लिए सस्ते चीनी सामान उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद हो सकते हैं क्योंकि इससे कीमतें कम होती हैं।
एशियाई देशों में ब्याज दरों पर असर
इकनॉमिस्ट निक मारो के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सस्ते चीनी सामान महंगाई कम करने में मददगार होंगे। नोमुरा बैंक के मुताबिक, चीन के उत्पाद कई एशियाई देशों में महंगाई कम कर सकते हैं। इससे वहां के केंद्रीय बैंक अमेरिकी फेड से अलग होकर ब्याज दरें कम कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, भारत में रिजर्व बैंक 100 बेसिस पॉइंट तक दरें कम कर सकता है, और फिलीपींस, थाईलैंड, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी कटौती की उम्मीद है।
चाइना शॉक का इतिहास और वर्तमान
1990 और 2000 के दशक में भी सस्ते चीनी सामान ने दुनिया की महंगाई को कम किया था। लेकिन, स्थानीय उद्योगों और नौकरियों को नुकसान पहुंचाया था। अब चीन घरेलू मांग कम होने की वजह से अपनी निर्यात गतिविधि बढ़ा रहा है।
सिंगापुर में महंगाई चुनाव का अहम मुद्दा रही, लेकिन सस्ते चीनी आयात की वजह से महंगाई उम्मीद से कम रहने की संभावना है। कई अन्य एशियाई देशों में भी इस ‘चाइना शॉक’ का असर दिख रहा है।
इस साल के पहले चार महीनों में चीन का ASEAN देशों को निर्यात 11.5% बढ़ा है। वहीं, अमेरिका को निर्यात 2.5% घटा है। अप्रैल में चीन के ASEAN निर्यात में 20.8% की वृद्धि हुई थी, जबकि अमेरिका को निर्यात 21% घटा था।
सस्ते चीनी उत्पादों का असर
गोल्डमैन सैक्स के अनुसार, जापान ने पिछले दो सालों में चीन से जो सामान मंगाया है, वे अन्य देशों की तुलना में लगभग 15% सस्ते हैं। भारत, वियतनाम और इंडोनेशिया ने अपने स्थानीय उद्योगों को बचाने के लिए संरक्षणवादी उपाय अपनाए हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां चीन से आयात ज्यादा हो रहा है। संरक्षणवादी उपाय में चीन से आयात पर अधिक टैरिफ या आशिंक पाबंदी शामिल है।
चाइना शॉक से कौन प्रभावित होगा
नोमुरा के मुताबिक, थाईलैंड ‘चाइना शॉक’ से सबसे अधिक प्रभावित होगा। इस साल वहां महंगाई कम होकर डेफ्लेशन की स्थिति आ सकती है। वहीं भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस में भी महंगाई केंद्रीय बैंक के लक्ष्य से कम रहने की संभावना है, जो आर्थिक चुनौतियों की झलक दिखाता है।