Markets

Prop Trading scam: कोई केवायसी नहीं, कोई डॉक्युमेंटेशन नहीं, जानिए प्रॉप ट्रेडिंग की आड़ में कैसे चल रहा है यह फर्जीवाड़ा

Prop Trading scam: कोई केवायसी नहीं, कोई डॉक्युमेंटेशन नहीं, जानिए प्रॉप ट्रेडिंग की आड़ में कैसे चल रहा है यह फर्जीवाड़ा

Last Updated on November 10, 2025 18:28, PM by Khushi Verma

हाल में करीब 150 करोड़ रुपये का सूरत का प्रॉपरायटरी ट्रेडिंग स्कैम सामने आया था। अब मुंबई, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान के स्टॉक ब्रोकर्स से जुड़े कई इनेवस्टर्स ने भी ऐसे ट्रेड्स में बड़े नुकसान होने की जानकारी दी है। हालांकि, उन्हें सूरत ट्रेडिंग स्कैम के ट्रेडर्स जितना नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन यह अब साफ हो गया है कि प्रॉप-ट्रेडिंग का इस्तेमाल ट्रेडर्स के साथ धोखाधड़ी के लिए धड़ल्ले से हो रहा है।

यह पाया गया है कि ऐसे ट्रेड्स में किसी तरह का एग्रीमेंट, KYC और पेपर ट्रेल नहीं होता है। ब्रोकिंग फर्म्स और ट्रेडर्स के बीच आपसी भरोसे से यह ट्रेड होता है। तब तक कोई दिक्कत नहीं आती है जब तक ट्रेडर्स को प्रॉफिट होता है। एक बार डिफॉल्ट या बड़ा नुकसान होने पर यह पूरा मामला सामने आता है। शुरुआत में सूरत के प्रॉपरायटरी ट्रेडिंग स्कैम में कुछ ही ट्रेडर्स को नुकसान होने का अनुमान था। लेकिन, बाद में इसका दायरा बढ़ गया।

SEBI के रेगुलेशंस के मुताबिक, प्रॉपरायटरी ट्रेडिंग (प्रॉप-ट्रेड) का मतलब ऐसे ट्रेड्स से है, जिन्हें ब्रोकर्स अपने पैसे से खुद के लिए करते हैं। लेकिन, प्रॉप ट्रेड्स की आड़ में धोखाधड़ी का जो खेल चल रहा है, जो हैरान करने वाला है। यह पूरा मॉडल काफी लीवरेज यानी उधार के पैसे पर आधारित है। कम पूंजी के इस्तेमाल से ज्यादा वैल्यू की ट्रेडिंग की वजह से लोगों को यह फायदेमंद लगता है।

बाजार से जुड़े सूत्रों ने मनीकंट्रोल को बताया कि ऐसे एजेंट्स हैं, जो उधार के पैसे का इंतजाम करते हैं। वे डिपॉजिट मार्जिन के साथ ब्रोकर्स से मिलकर ट्रेडिंग की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। ये एजेंट्स न तो ब्रोकर्स की तरफ से अथॉराइज्ड होते हैं और न ही ये रेगुलेटर के पास रजिस्टर्ड होते हैं। ये ब्रोकर्स के लिए बिजनेस लाने का काम करते हैं। पेपर पर उनका नाम कहीं नहीं आता है। क्लाइंट्स से लिया गया मार्जिन मनी ऐसे अकाउंट में रखा जाता है, जो ब्रोकर्स से जुड़ा नहीं होता है। कई बार यह कैश में होता है।

ब्रोकर्स को इस प्रॉप ट्रेड्स से तीन तरह से फायदा होता है। ट्रांजेक्शंस पर उसे ब्रोकरेज के रूप में इनकम होती है। इसके अलावा ट्रेडर्स को हुए प्रॉफिट में भी उसकी हिस्सेदारी होती है। तीसरा, उसे क्लाइंट्स को दिए गए उधार के पैसे पर इंटरेस्ट मिलता है। एजेंट्स को ब्रोकर्स से कमीशन मिलता है। साथ ही मार्जिन लिमिट की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ट्रेडर्स से फीस मिलती है।

ट्रेडर्स को यह फायदा होता है कि ब्रोकर के पास सिर्फ 1 करोड़ रुपये डिपॉजिट करने पर उसे 7 करोड़ रुपये तक की ट्रेडिंग करने की सुविधा मिल जाती है। उसे उधार के पैसे पर इंटरेस्ट चुकाना होता है। सेबी के नियमों के मुताबिक, रिटेल ट्रेडर को ट्रेड के लिए इतना ज्यादा कर्ज मिलना मुमकिन नहीं है। ऐसे ट्रेड की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने बताया, “ट्रेड में जब तक फायदा होता है, सब एक दूसरे के दोस्त होते हैं। लेकिन, लॉस या डिफॉल्ट की स्थिति में लोग एक दूसरे के दुश्मन हो जाते हैं।”

इस प्रॉप ट्रेडिंग के फर्जीवाड़े के लिए लोगों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए शिकार बनाया जाता है। कई मामलों में ब्रोकर्स के एजेंट्स ऐसे लोगों की तलाश में रहते हैं, जो मार्जिन मनी की कई गुना वैल्यू की ट्रेडिंग में दिलचस्पी रखते हैं। उन्हें हाई रिटर्न, इंटरेस्ट पर ट्रेडिंग के लिए मिलने वाला पैसा लुभाता है। ऐसे ट्रेड्स की जानकारी रखने वाले एक दूसरे व्यक्ति ने बताया कि यह प्रॉप मॉडल ज्यादातर गुजरात, राजस्थान, मुंबई, जोधपुर, बेंगलुरुआ और दिल्ली-एनसीआर जैसे शहरों में काम करता है।

ट्रेडिंग का यह पैटर्न पहले कुछ सीमित समूह में इस्तेमाल होता था। लेकिन पिछले दो सालों में इसका काफी विस्तार हुआ है। डेरिवेटिव्स में कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ाने के बाद अब हाई रिटर्न और लॉ कॉस्ट ट्रेडिंग की आड़ में कई इनवेस्टर्स के पैसे को पूल किया जाता है। इनवेस्टर्स को कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाने के लालच में यह फायदेमंद लगता है।

Source link

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

To Top