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Lenskart Share price: मजबूत ब्रांड, मैनेजमेंट भी अच्छा तब भी क्यों पहले दिन ही लुढ़क गए लेंसकार्ट के शेयर?

Lenskart Share price: मजबूत ब्रांड, मैनेजमेंट भी अच्छा तब भी क्यों पहले दिन ही लुढ़क गए लेंसकार्ट के शेयर?

Last Updated on November 10, 2025 22:24, PM by Pawan

नई दिल्ली: आईवियर रिटेलर लेंसकार्ट के शेयर बाजार में फीके प्रदर्शन ने निवेशकों और जानकारों के बीच चर्चा छेड़ दी है। आईपीओ को 20 गुना से ज्यादा सब्सक्राइब किए जाने के बावजूद, शेयर की शुरुआत उम्मीद से कमजोर रही, जिसने शेयर बाजार के कई लोगों को चौंका दिया।

क्या रही शेयर बाजार में चाल

आईपीओ के जरिए लेंसकार्ट का 2 रुपये मूल्य का एक शेयर निवेशकों को 402 रुपये में मिला था। सोमवार को बीएसई में यह करीब तीन फीसदी डिस्काउंट के साथ 390 रुपये पर लिस्ट हुआ। कारोबार के दौरान यह लुढ़कते हुए 355.70 रुपये तक गिर गया। हालांकि बाद में यह सुधर गया और ऊंचे में इसका भाव 413.80 रुपये तक चढ़ा। शाम में 3.45 बजे यह 403.30 रुपये पर ट्रेड हो रहा था।

महंगी कीमत बनी वजह?

कोलंबिया सिक्योरिटीज के इक्विटी रिसर्च हेड, धर्मेश कांत के मुताबिक, समस्या कंपनी के बिजनेस में नहीं, बल्कि आईपीओ की कीमत बहुत ज्यादा रखने में है। कांत ने ईटी नाउ को बताया, “यह हैरान करने वाली बात है कि 20 गुना सब्सक्रिप्शन के बाद भी शेयर की लिस्टिंग अच्छी नहीं रही। कंपनी का वैल्यूएशन पहले से ही बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया गया था।”

वैल्यूएशन बहुत ज्यादा

कांत का कहना है कि लेंसकार्ट एक मजबूत ब्रांड है, जिसके मैनेजमेंट भी अच्छे हैं और बाजार में उसकी अच्छी पकड़ है। लेकिन, मौजूदा वैल्यूएशन में आगे बढ़ने की गुंजाइश बहुत कम है। उन्होंने समझाया, “यह 15-20 साल पुरानी कंपनी है और इसका मार्केट शेयर सिर्फ 4-5% है। अगर कंपनी की कमाई 20% बढ़े और मार्जिन 15% रहे, तो भी FY30 में इसका मुनाफा करीब 1,000 करोड़ रुपये होगा। इसका मतलब है कि इसका फॉरवर्ड P/E लगभग 70x होगा।” इस कीमत पर, कांत का मानना है कि शेयर अभी भी महंगा है और उन्होंने इसे ‘अवॉइड’ यानी खरीदने से बचने की सलाह दी है।

अच्छा बिजनेस, खराब कीमत

कांत ने दूसरी बड़ी कंपनियों के आईपीओ का उदाहरण देते हुए कहा कि “अच्छे बिजनेस भी खराब कीमत की वजह से फेल हो सकते हैं।” उन्होंने कहा, “लेंसकार्ट के बिजनेस या मैनेजमेंट में कुछ भी गलत नहीं है – सिर्फ कीमत की समस्या है। नायका को ही देख लीजिए, चार साल बाद भी उसका शेयर अपने उच्चतम स्तर से 40-45% नीचे चल रहा है, जबकि वह एक अच्छा बिजनेस है।” उन्होंने यह भी बताया कि एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया और हुंडई जैसे आईपीओ ने दिखाया कि “थोड़ा पैसा निवेशकों के लिए छोड़ना” निवेशकों का भरोसा बनाए रखने में मदद करता है, जो हाल के आईपीओ में गायब है।

जियो फ्रेम्स से प्रतिस्पर्धा का खतरा

कांत ने चेतावनी दी कि रिलायंस का जियो फ्रेम्स आने वाले सालों में आईवियर मार्केट को बदल सकता है। उन्होंने कहा, “रिलायंस मास-मार्केट में चीजें बदलने के लिए जाना जाता है। जब जियो फ्रेम्स लॉन्च होगा, तो यह लेंसकार्ट की कीमत तय करने की क्षमता को चुनौती देगा।” कांत का मानना है कि अगर शेयर की कीमत 50% भी गिर जाए, तब भी यह तुरंत खरीदने लायक नहीं होगा। उन्हें लगता है कि प्रतिस्पर्धा बढ़ने के बाद कंपनी की ग्रोथ का फिर से आकलन करना होगा।

आईपीओ वैल्यूएशन को हकीकत की जरूरत

कांत का मानना है कि आईपीओ मार्केट में कीमतें बहुत ज्यादा आक्रामक हो गई हैं, जिससे छोटे निवेशकों के लिए कोई खास फायदा नहीं बच रहा है। उन्होंने कहा, “आईपीओ मार्केट को स्वस्थ रखने के लिए, कंपनियों को अपनी पेशकश की कीमत समझदारी से रखनी चाहिए। निवेशकों को लिस्टिंग वाले दिन सिर्फ हवा-हवाई बातें नहीं, बल्कि असली वैल्यू दिखनी चाहिए।”

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