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ब्याज दरों में 0.50% की कटौती हो सकती है: कोटक सिक्युरिटीज के अनुसार महंगाई में कमी से फैसला संभव, दिसंबर में होगी RBI की मीटिंग

ब्याज दरों में 0.50% की कटौती हो सकती है:  कोटक सिक्युरिटीज के अनुसार महंगाई में कमी से फैसला संभव, दिसंबर में होगी RBI की मीटिंग

Last Updated on November 5, 2025 12:01, PM by Khushi Verma

 

मुंबई3 मिनट पहले

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रिजर्व बैंक आने वाले महीनों में रेपो रेट में 0.25-0.5% तक की कटौती का ऐलान कर सकता है। खाने-पीने की चीजों के दामों में कमी और हालिया जीएसटी कटौती के असर से महंगाई में लगातार नरमी बनी हुई है। इसी वजह से RBIU को आर्थिक ग्रोथ को सपोर्ट देने के लिए मौद्रिक नीति को उदार बनाने का मौका मिलेगा। कोटक सिक्युरिटीज की रिपोर्ट में यह संभावना जताई गई है।

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि टैरिफ और ट्रेड से जुड़ी चुनौतियों के बावजूद, घटती महंगाई आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार (ग्रोथ) को बढ़ाने के लिए दरों में कटौती की गुंजाइश बना रही है। खाने-पीने की चीजों की कीमतें घटने से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित रिटेल महंगाई दर सितंबर में घटकर 1.54% पर आ गई थी।

जब रेपो रेट घटता है, तो बैंकों को सस्ता कर्ज मिलता है रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी RBI जिस रेट पर बैंकों को लोन देता है उसे रेपो रेट कहते हैं। जब RBI रेपो रेट घटाता है, तो बैंकों को सस्ता कर्ज मिलता है, और वो इस फायदे को ग्राहकों तक पहुंचाते हैं। यानी, आने वाले दिनों में होम और ऑटो जैसे लोन 0.50% तक सस्ते हो सकते हैं।

संभावित कटौती के बाद 20 साल के ₹20 लाख के लोन पर ईएमआई 617 रुपए तक घट जाएगी। इसी तरह ₹30 लाख के लोन पर ईएमआई 925 रुपए तक घट जाएगी। नए और मौजूदा ग्राहकों दोनों को इसका फायदा मिलेगा। 20 साल में करीब 1.48 लाख का फायदा मिलेगा।

इस साल 3 बार घटा रेपो रेट, 1% की कटौती हुई RBI ने फरवरी में हुई मीटिंग में ब्याज दरों को 6.5% से घटाकर 6.25% कर दिया था। मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की ओर से ये कटौती करीब 5 साल बाद की गई थी।

दूसरी बार अप्रैल में हुई मीटिंग में भी ब्याज दर 0.25% घटाई गई। वहीं जून में रेपो रेट को 0.5% घटाकर 5.50% कर दिया था। यानी, मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी ने इस साल ब्याज दरें 1% घटाई हैं।

रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाता और घटाता क्यों है? किसी भी सेंट्रल बैंक के पास पॉलिसी रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है, तो सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है।

पॉलिसी रेट ज्यादा होगी तो बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है।

इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है।

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