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IPO मार्केट में कैसे तय हो रही है प्राइसिंग, LensKart है अगली कड़ी; क्या है पूरा खेल

IPO मार्केट में कैसे तय हो रही है प्राइसिंग, LensKart है अगली कड़ी; क्या है पूरा खेल

Last Updated on October 31, 2025 9:46, AM by Khushi Verma

आईवियर रिटेलर लेंसकार्ट सॉल्यूशंस लिमिटेड का 7,278.02 करोड़ रुपये का IPO 31 अक्टूबर को खुल रहा है। इसके लिए प्राइस बैंड 382-402 रुपये प्रति शेयर है। दिग्गज निवेशक और AI फर्म Gquant FinXRay के फाउंडर शंकर शर्मा का मानना है कि IPO प्राइसिंग एक खेल है, जिसे बहुत कम लोग समझते हैं। यहां तक कि वे भी नहीं, जो IPO प्राइसिंग तय करते हैं। शर्मा ने एक आर्टिकल में लिखा है कि उन्हें खुद भी इसका सही मतलब 2022 में समझ में आया।

कहानी की शुरुआत Paytm के IPO से होती है। इस कंपनी ने 1.4 लाख करोड़ रुपये के मार्केट कैप के साथ लिस्ट होने का फैसला किया। लोग सोचने लगे कि यह तो बहुत बड़ा और शानदार बिजनेस है। और ऐसा सोचना लाजमी भी था क्योंकि Paytm के स्टिकर्स भारत के हर छोटे बड़े दुकानदार की दुकान पर लगे थे। नोटबंदी के दौरान Paytm इस कदर फेमस हुई कि ठेले वालों तक ने क्यूआर कोड लगाने शुरू कर दिए।लेकिन लिस्टिंग के बाद Paytm का स्टॉक गिरने लगा और महीने-दो महीने में मार्केट कैप ₹1.4 लाख करोड़ से घटकर ₹20,000 करोड़ के आसपास तक चला गया।

Nykaa, Zomato, Policy Bazaar भी इसी राह पर

 

ऐसा ही कुछ Nykaa, Zomato, Policy Bazaar, और CarTrade के साथ भी देखने को मिला। Nykaa ने हमें बताया कि लिपस्टिक बेचने का ऐप ₹50,000 करोड़ का हो सकता है, Zomato ₹60,000 करोड़ के मार्केट कैप पर IPO लाई, Policy Bazaar ने ₹45,000-50,000 करोड़ के बीच और CarTrade ने ₹7400 करोड़ के मार्केट कैप पर लिस्ट होने का मन बनाया। फिर क्या हुआ? इन कंपनियों के स्टॉक्स 40-80 प्रतिशत गिर गए। अब लोग इनकी कमियों को देखकर हंसी उड़ा रहे थे, लेकिन असल खेल तो कुछ और था जो किसी ने सही से समझा ही नहीं। यह खेल था एंकरिंग बायस का।

क्या है एंकरिंग बायस

एंकरिंग बायस का मतलब है कि जब आप किसी चीज को बहुत ऊंचा आंकते हैं, तो बाद में उसकी गिरी हुई वैल्यू भी एक अच्छा सौदा लगती है। शर्मा के मुताबिक, Paytm का IPO ₹1.4 लाख करोड़ के मार्केट कैप पर हुआ था, लोगों ने पैसे लगाए। फिर जब स्टॉक गिरकर ₹350 पर आ गया, तो कुछ लोग इसे एक “सस्ता सौदा” मानने लगे। 80 प्रतिशत गिरने के बाद स्टॉक और नीचे नहीं जा सकता है।

यह मानसिकता का खेल है। कंपनियां जानबूझकर IPO की प्राइसिंग ज्यादा रखती हैं ताकि जब स्टॉक गिरे, तो उसे “सस्ता सौदा” माना जाए। फिर लोग सोचते हैं कि इतना गिरने के बाद अब यह और नहीं गिर सकता। इस तरह से ये कंपनियां कुछ समय बाद “अच्छा सौदा” बन जाती हैं, जबकि असल में उनकी रियल वैल्यू बहुत कम होती है। Paytm, Nykaa, Zomato, और बाकी कंपनियों ने यह जानबूझकर किया या नहीं, यह एक रहस्य बना रहेगा।

शंकर शर्मा लिखते हैं, ‘भारतीय खुदरा निवेशकों को यह बताया गया कि ये कंपनियां ‘टेक कंपनियां’ हैं, और टेक कंपनियां आमतौर पर घाटे में होती हैं, तो प्लीज स्टैंडर्ड वैल्यूएशन मेट्रिक्स जैसे P/E रेशियो को लेकर ज्यादा मत सोचो। मार्केटिंग ने इस विचार को जबरदस्त बढ़ावा दिया। टीवी चैनल इसका जमकर प्रचार करते रहे, भारतीय खुदरा निवेशकों की मैच्योरिटी और जोखिम लेने की क्षमता के बारे में बातें की। IPO सफल होते गए, लेकिन फिर इन कंपनियों के स्टॉक्स 50-80 प्रतिशत गिर गए। जब गिरावट आई तो अचानक से ये शेयर ‘ग्रेट वैल्यू’ वाले शेयर बन गए क्योंकि वे इससे ज्यादा नहीं गिर सकते। अगर गिरे तो वे फ्रॉड की वजह से जीरो हो जाएंगे। इसलिए लगभग कोई भी पर्याप्त रूप से बड़ा स्टॉक, जिसमें किसी वैध कारोबार की बुनियादी बातें भी हों, अपने पीक प्राइस से 80 प्रतिशत से नीचे नहीं जाएगा, कम से कम, स्थायी रूप से तो नहीं।

कोई नहीं पूछ रहा सवाल

शंकर शर्मा आगे लिखते हैं, ‘पेटीएम अभी भी 20 गुना रेवेन्यू पर है, जबकि यह फिनटेक कम और साधारण ब्रोकरेज और एनबीएफसी ज्यादा बन रही है। ऐसे में क्या पेटीएम की इंटर्नल वैल्यू इस 80 प्रतिशत कम कीमत से भी कम नहीं है। नाइका अभी भी लगभग 10 गुना सेल्स पर है, पीबी फिनटेक अभी भी 15 गुना रेवेन्यू पर है, कारट्रेड अभी भी 12 गुना रेवेन्यू पर है..तो क्या हम सिर्फ हाई आईपीओ वैल्यूएशन में ही लगे हुए नहीं हैं और ग्रॉस इनीशियल ओवरवैल्यूएशन के आधार पर वैल्यू की कैलकुलेशन कर रहे हैं?

शंकर शर्मा के मुताबिक, अगर Paytm शुरुआत में सही प्राइसिंग पर IPO लाई होती तो जैसे कि ₹20,000 करोड़ पर, तो वह कभी ₹1.4 लाख करोड़ तक नहीं पहुंच पाती। कम से कम, इतनी जल्दी तो नहीं। अगर नाइका 10,000 करोड़ रुपये की उचित वैल्यूएशन पर आईपीओ लाई होती, तो वह अपने मौजूदा 75,000 करोड़ रुपये के मार्केट कैप तक कभी नहीं पहुंच पाती। किसी नई लिस्टिंग को 7-10 गुना तक पहुंचने में सालों लग जाते हैं, और सबसे जरूरी बात, इसके लिए लगातार अच्छे कारोबारी प्रदर्शन की जरूरत होती है।

अब लेंसकार्ट है मैदान में

IPO का असली खेल यह है कि आप कंपनी की वैल्यू इतनी ऊंची तय करें कि बाद में जब यह गिरे तो वह “सस्ता सौदा” लगने लगे। और यही तरीका कई कंपनियों ने अपनाया है। LensKart भी अब इसी खेल का हिस्सा बन सकती है। लिस्टिंग के बाद शेयर गिर सकता है लेकिन मार्केट कैप 3000 करोड़ रुपये तक नहीं गिर सकता और न ही गिरेगा।

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