Last Updated on October 5, 2025 10:47, AM by Khushi Verma
आजकल ऑनलाइन शॉपिंग में कैश-ऑन-डिलीवरी (COD) पेमेंट बहुत लोकप्रिय है, पर कुछ ई-कॉमर्स कंपनियां COD ऑर्डर पर अलग से ‘कैश हैंडलिंग चार्ज’ वसूल रही हैं। सरकार ने इसको लेकर शिकायतें मिलने के बाद जांच शुरू कर दी है, क्योंकि ऐसे चार्ज को डार्क पैटर्न यानी “छल या भ्रामक रणनीति” माना जाता है, जिससे ग्राहकों को चुपचाप एक्स्ट्रा भुगतान करना पड़ता है।
क्या होता है COD चार्ज और क्यों लगाया जाता है?
कैश-ऑन-डिलीवरी (COD) वह तरीका है, जिसमें ग्राहक को ऑर्डर डिलीवरी के समय कैश या डिजिटल माध्यम से भुगतान करना होता है। कंपनियां इस्तेमाल में आसानी और ग्राहकों को भरोसा देने के लिए यह विकल्प देती हैं। लेकिन कूरियर पार्टनर नकदी संभालने और रिस्क मैनेज करने के नाम पर अतिरिक्त चार्ज वसूलता है, जिसे ‘COD चार्ज’ या ‘कैश हैंडलिंग फी’ कहा जाता है। कई बार ये चार्ज शॉपिंग के आखिरी स्टेप में “ड्रिप प्राइसिंग” के तहत छिपाया जाता है, जिससे ग्राहक को या तो पता नहीं चलता या मजबूरन देना पड़ता है।
डार्क पैटर्न कैसे काम करता है?
डार्क पैटर्न डिजिटल दुनिया का वह हथियार है, जिससे यूजर को धोखा दिया जाता है। इसमें चार्ज को छुपाना, सहमति बॉक्स को पहले से टिक कर देना, या झूठे “1 प्रोडक्ट बचा है” जैसे मेसेज दिखाकर ग्राहक को जल्दी खरीदारी के लिए मजबूर किया जाता है। भारत में सरकार ने हाल ही में ऐसे 13 डार्क पैटर्न्स को “अनुचित व्यापार” मानकर बैन किया है।
क्यों है यह समस्या बड़ी?
एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के शीर्ष 53 ऐप्स में से 52 में कम से कम एक डार्क पैटर्न मिलता है। यानी, छिपे हुए चार्जेज, फेक पॉप-अप, या भ्रामक डिजाइन हर जगह आम हैं। छोटे कस्बों और शहरों में लोग ज़्यादातर COD ही चुनते हैं, जिससे उनके ठगे जाने का खतरा बढ़ जाता है।
सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
सरकार ने कंपनियों को ऐप्स/वेबसाइट्स का ऑडिट करने के निर्देश दिए हैं और एक संयुक्त वर्किंग ग्रुप बनाने का प्लान भी है। अगर किसी प्लेटफॉर्म ने डार्क पैटर्न का इस्तेमाल किया तो उस पर जुर्माना, डिज़ाइन बदलने या सख्त सरकारी नियम लागू किए जा सकते हैं।
