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US Stocks: अमेरिकी शेयर बाजार में कर रहे हैं निवेश? जान लें ये नियम, वरना देना पड़ सकता है 40% तक टैक्स

US Stocks: अमेरिकी शेयर बाजार में कर रहे हैं निवेश? जान लें ये नियम, वरना देना पड़ सकता है 40% तक टैक्स

Last Updated on October 3, 2025 16:20, PM by Pawan

US Stocks: बेहतर निवेश की तलाश में भारतीय निवेशक इन दिनों तेजी से अमेरिकी शेयर बाजार की ओर रुख कर रहे हैं। पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज (PMS) अकाउंट, ग्लोबल ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म और फिनटेक ऐप्स के जरिए कई भारतीय निवेशक अमेरिकी शेयरों में पैसा लगा रहे हैं। हालांकि कम ही लोगों को पता है कि इस निवेश पर एक ऐसा टैक्स लग सकता है जिसके बारे में उन्होंने शायद ही कभी सुना हो। इस टैक्स का नाम है यूएस एस्टेट टैक्स (US Estate Tax)।

दिग्गज फंड मैनेजर और हेलियोस कैपिटल के फाउंडर समीर अरोड़ा ने हाल ही में चेतावनी दी है कि अगर निवेशक अपने नाम पर सीधे अमेरिकी शेयर रखते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है, तो उनके उत्तराधिकारियों को इन एसेट्स पर 40% तक टैक्स चुकाना पड़ सकता है।

क्यों बढ़ रही चिंता?

सेंसेक्स और निफ्टी ने इस साल निवेशकों को अब तक सिर्फ करीब 4.5% का मामूली रिटर्न दिया है। जबकि इस दौरान अमेरिका के S&P 500 इंडेक्स 15% से अधिक की तेजी आई है। रिटर्न में इस अंतर ने कई भारतीय निवेशकों को अमेरिकी बाजार की ओर खींचा है। खासतौर से HNI (हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल) और PMS क्लाइंट्स का इस ओर झुकाव बढ़ा है।

 

लेकिन, अधिकतर निवेशक इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि अमेरिका में विदेशी निवेशकों के लिए यूएस एस्टेट टैक्स (US Estate Tax) की छूट सीमा केवल 60,000 डॉलर (करीब 50 लाख रुपये) है। इसका मतलब है कि अगर किसी भारतीय निवेशक ने इस राशि से अधिक अमेरिकी शेयरों में निवेश कर रखा है, तो उनके उत्तराधिकारियों को इन्हें पाने से पहले मेरिकी सरकार को भारी टैक्स चुकाना पड़ सकता है।

US एस्टेट टैक्स क्या है?

US एस्टेट टैक्स को आप इनहेरिटेंस टैक्स यानी विरासत पर लगने वाले टैक्स जैसा समझ सकते हैं। यह कानून कहता है कि अगर किसी गैर-अमेरिकी नागरिक के पास अमेरिका में संपत्ति हैं, तो अमेरिकी सरकार उसकी मृत्यु के बाद उस संपत्ति को उत्तराधिकारियों को ट्रांसफर करने से पहले टैक्स वसूल सकती है। संपत्ति की परिभाषा में शेयरों में किया निवेश भी शामिल है।

गैर-अमेरिकी निवेशकों के लिए छूट की सीमा: 60,000 डॉलर (लगभग 50 लाख रुपये)

टैक्स दर: अधिकतम 40% तक

यह नियम तब भी लागू होता है जब निवेशक भारत में रह रहा हो, भारतीय ब्रोकर के जरिए निवेश कर रहा हो, या PMS खाते के जरिए सीधे शेयर खरीद रहा हो।

US एस्टेट टैक्स के बारे में क्यों नहीं जानते निवेशक?

US एस्टेट टैक्स का खतरा अधिकतर भारतीय निवेशक नजरअंदाज कर देते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं होती। यह जोखिम खासकर इन निवेशकों के लिए अधिक हैं-

– रिटेल निवेशक, जो ग्लोबल ट्रेडिंग ऐप्स का इस्तेमाल करके अमेरिकी शेयर खरीदते हैं।

– PMS पोर्टफोलियो, जो सीधे अमेरिकी शेयरों में निवेश करते हैं।

– HNIs, जो अमेरिकी शेयरों में बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं।

– फैमिली ऑफिसेज, जो पूल्ड स्ट्रक्चर से बाहर सीधे अमेरिकी स्टॉक्स खरीदते हैं।

सबसे अहम बात यह है कि भारत और अमेरिका के बीच कोई ‘एस्टेट टैक्स समझौता’नहीं है। इसका मतलब है कि भारतीय निवेशकों को सिर्फ 60,000 डॉलर की छूट सीमा से ही संतोष करना पड़ेगा, और इसके ऊपर की संपत्ति पर टैक्स का बोझ पड़ सकता है।

US एस्टेट टैक्स से बचने या कम करने के कानूनी तरीके

भारतीय निवेशकों के लिए कई ऐसे विकल्प मौजूद हैं, जिनसे वे अमेरिकी शेयरों में निवेश तो कर सकते हैं, लेकिन US एस्टेट टैक्स के दायरे में नहीं आएंगे। इनमें से प्रमुख उपाय हैं:

1. विदेशी म्युचुअल फंड्स और ETFs

आयरलैंड या लक्जमबर्ग में पंजीकृत फंड्स में निवेश करना बेहतर विकल्प है। ये फंड अमेरिकी शेयरों में निवेश करते हैं, लेकिन इन पर अमेरिकी एस्टेट टैक्स लागू नहीं होता क्योंकि इन्हें अमेरिकी कानूनों के तहत US एसेट्स नहीं माना जाता।

2. GIFT City ऑफशोर फंड्स

भारत के इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज सेंटर (IFSC) में बने पूल्ड फंड स्ट्रक्चर के जरिए निवेश करने पर शेयर सीधे आपके नाम पर नहीं माने जाएंगे। इससे एस्टेट टैक्स से बचाव हो जाता है।

3. कॉरपोरेट और ट्रस्ट स्ट्रक्चर

HNIs और फैमिली ऑफिसेज अक्सर किसी नॉन-यूएस कंपनी या फिर एक फॉरेन ट्रस्ट का सहारा लेते हैं। इससे शेयरों की कानूनी मालिकाना हक व्यक्ति से हटकर स्ट्रक्चर पर चला जाता है।

4. लाइफ इंश्योरेंस कवर

अगर कोई निवेशक अपने निवेश स्ट्रक्चर में बदलाव नहीं करना चाहता, तो वह एस्टेट टैक्स के अनुमानित बोझ को कवर करने के लिए एक लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी ले सकता है। इससे वारिसों को टैक्स भरने के लिए तुरंत नकद राशि उपलब्ध हो जाती है।

सावधानी भी जरूरी

हालांकि ये सभी विकल्प निवेशकों को अमेरिकी एस्टेट टैक्स से बचने में मदद कर सकते हैं, लेकिन इनके साथ कई तरह की कानूनी और कॉम्प्लायंस जिम्मेदारियां भी जुड़ी होती हैं। इनमें शामिल हैं:

– भारत के FEMA और RBI नियम

– अमेरिका के ट्रस्ट, टैक्स और रिपोर्टिंग रेगुलेशंस

– डबल टैक्सेशन और डिस्क्लोजर नॉर्म्स

यही वजह है कि एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि किसी भी स्ट्रक्चर को अपनाने से पहले निवेशक को प्रोफेशनल लीगल और टैक्स गाइडेंस जरूर लेनी चाहिए।

 

डिस्क्लेमरः एक्सपर्ट्स/ब्रोकरेज फर्म्स की ओर से दिए जाने वाले विचार और निवेश सलाह उनके अपने होते हैं, न कि वेबसाइट और उसके मैनेजमेंट के। यूजर्स को सलाह देता है कि वह कोई भी निवेश निर्णय लेने के पहले सर्टिफाइड एक्सपर्ट से सलाह लें।

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