Last Updated on September 21, 2025 22:02, PM by Pawan
H-1B visa fees: अमेरिकी सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि H-1B वीजा के लिए प्रस्तावित $1,00,000 (करीब 88 लाख रुपये) शुल्क केवल नए आवेदन पर ही लागू होगा। साथ ही, यह सालाना नहीं, बल्कि सिर्फ एक बार लागू होने वाली फीस है। इससे एक्सपर्ट का मानना है कि भारत की आईटी कंपनियों पर असर सीमित रह सकता है। क्योंकि वीजा रिन्युअल, री-एंट्रीज और मौजूदा वीजाहोल्डर्स इस शुल्क से मुक्त रहेंगे।
पहले चिंता जताई रही थी कि भारतीय आईटी कंपनियों के मार्जिन और अन्य बिजनेस पैरामीटर्स पर काफी नकारात्मक असर पड़ेगा। हालांकि, अब एनालिस्ट का कहना है कि भारतीय कंपनियों को जितने H-1B वीजा जारी हैं, उसे हिसाब से मार्जिन पर 7 प्रतिशत तक दबाव की आशंका है।
क्या है एक्सपर्ट की राय
EIIRTrend के फाउंडर पारिख जैन का कहना है कि नई फीस मौजूदा कर्मचारियों या रिन्युअल पर लागू नहीं होगी। इसका मतलब है कि कंपनियों को कोई भारी नुकसान नहीं होगा। इसके अलावा, जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Gen AI) को अपनाने से किसी प्रोजेक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या भी कम हो गई है।
जैन ने कहा, ‘टेक कंपनियां एक बार का $100,000 शुल्क भी चुका सकती हैं। बड़ी समस्या नहीं है।’ हालांकि, उन्होंने उन छात्रों के लिए चुनौती बढ़ने का इशारा किया, जिनके लिए अब अमेरिका में नौकरी पाने के मौके कम हो सकते हैं।
नए कर्मचारियों के लिए मुश्किल
सेंटरम ब्रोकरेज की पीयूष पांडे की भी कमोबेश यही राय है। उनका कहना है कि यह शुल्क मुख्य रूप से निकट भविष्य में अमेरिका जाने वाले कर्मचारियों को प्रभावित करेगा। उदाहरण के लिए, अगले महीने जाने वाले कर्मचारी को अधिक शुल्क देना होगा। इससे मार्जिन पर 50-100 बेसिस पॉइंट का असर हो सकता है, लेकिन अभी और स्पष्टता आने वाली है।
ISG की इंडिया रिसर्च की चीफ बिजनेस लीडर नम्रता दर्शन ने कहा, ‘यह शुल्क किसी मौजूदा बिजनेस मॉडल या ऑपरेटिंग मॉडल को महत्वपूर्ण रूप से बदलने वाला नहीं है। लेकिन, भविष्य में अगर किसी को हायर करना पड़ा तो यह सब लोकली ही करना पड़ेगा।’
H-1B पर निर्भरता में कमी
डेटा भी बताते हैं कि आईटी कंपनियों पर नई फीस का सीमित प्रभाव होगा। टॉप भारतीय आईटी फर्मों के लिए H-1B अलॉटमेंट एनालिसिस से दिखता है कि सूरतेहाल बदल रहा है।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इंफोसिस और विप्रो ने 2022 से अपने वीजा आवंटन में काफी गिरावट देखी है: TCS लगभग 45 प्रतिशत, इंफोसिस 71 प्रतिशत से अधिक और विप्रो लगभग 33 प्रतिशत। इन फर्मों ने कहा कि अब उनकी उत्तर अमेरिका में कर्मचारियों को तैनात करने में H-1B वीजा पर निर्भरता 20 से 50 प्रतिशत से कम है।
इससे जाहिर होता है कि कंपनियां पूरी तरह से H-1B वीजा प्रोग्राम को छोड़ नहीं रही हैं। बल्कि, वे रणनीतिक बदलाव कर रही हैं। एकबारगी शुल्क के कारण व्यापक संकट की आशंका काफी कम है।

इंडस्ट्री पर कितना होगा असर?
UBS ग्लोबल रिसर्च का है कि अगर यह शुल्क केवल नए आवेदकों पर लागू होता है, तो Cognizant जैसी कंपनियों के ऑपरेटिंग मार्जिन पर 100-150 बेसिस पॉइंट का असर हो सकता है। क्योंकि उनकी H-1B पर निर्भरता अधिक है। वहीं, Accenture पर सबसे कम असर होगा।
Sowilo Investment Managers के संदीप अग्रवाल ने CNBC-TV18 से कहा कि शीर्ष पांच भारतीय आईटी फर्में कुल $80 बिलियन रेवेन्यू पैदा करती हैं। उन्हें नए वीजा नियमों से $1 बिलियन सालाना नुकसान हो सकता है। यह मार्जिन पर 7 प्रतिशत तक दबाव डाल सकता है। फिर भी, ये आंकड़े उस पहले के डर की तुलना में छोटे हैं कि नई फीस हर साल लगेगी और रिन्युअल पर लागू होगी। उस स्थिति में नुकसान काफी भयानक हो सकता था।
कितना मजबूत है कानूनी आधार?
व्हाइट हाउस की स्पष्टता के बावजूद, इस कदम की वैधता और टिकाऊपन को लेकर सवाल बने हुए हैं। HFS रिसर्च के CEO फिल फर्स्ट ने कहा कि नई पॉलिसी का ‘आधार काफी कमजोर’ है। उनका कहना है, ‘शुल्क तय करने का USCIS के पास है, न एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिए। मुझे उम्मीद है कि 21 सितंबर से पहले मुकदमेबाजी और रोक लगेगी। कांग्रेस के समर्थन के बिना, टिकाऊपन कम है।’
हालांकि, फिल कहा कि लंबी अवधि की कहानी यह है कि यह पॉलिसी आईटी इंडस्ट्री को तेजी से ऑटोमेशन, प्लेटफॉर्माइज्ड सर्विसेज और H-1B पर कम निर्भरता की ओर धकेलेगी।

ऑफशोरिंग को मिलेगा बढ़ावा
अमेरिका स्थिति Kotchen & Low LLP के डैनियल लो ने कहा कि प्रस्तावित शुल्क से हायरिंग का तरीका बदल सकता है। उन्होंने कहा, ‘$100,000 शुल्क कंपनियों को स्पष्ट संकेत देगा कि वे ऐसे H-1B कर्मचारियों को अमेरिका में न लाएं, जिनका काम ऑफशोर किया जा सकता है। इससे कुछ पद निश्चित रूप से ऑफशोर होंगे।’
साथ ही, अमेरिकी कंपनियां उन्हीं कर्मचारियों के लिए शुल्क का बोझ उठाना चाहेंगी, जो सबसे कुशल और तजुर्बेकार होंगे। मिड टर्म भारतीय आईटी फर्मों पर इसका प्रभाव ‘मिलाजुला’ होगा।
भारत के लिए अवसर
यह भारत के लिए यह बदलाव नए मौके के दरवाजे खोल सकता है। Quess Corp के CEO गुरुप्रसाद श्रीनिवासन ने कहा कि यह अमेरिकी पॉलिसी ‘भारत के लिए निर्णायक पल’ बन सकती है। फिलहाल अप्रूव्ड H-1B वीजा आवेदन का लगभग 71 प्रतिशत भारतीय हैं। इससे पता चवता है कि भारतीय टैलेंट अमेरिका पर किस हद तक निर्भर हैं।
श्रीनिवासन ने कहा, ‘जैसे-जैसे अमेरिका में ऑन-साइट भूमिकाएं महंगी होती जाएंगी, अधिक काम भारत में शिफ्ट होगा। इससे अवसर बढ़ेंगे और कुशल प्रोफेशनल्स को घर में करियर बनाने का मौका मिलेगा। इससे शायद दशकों का ब्रेन ड्रेन पलट जाएगा।’
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