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अमेरिका में 8 महीने बाद ब्याज दर में 0.25% कटौती: इससे लोन सस्ते होंगे, दरों में कटौती से भारत में निवेश बढ़ सकता है

अमेरिका में 8 महीने बाद ब्याज दर में 0.25% कटौती:  इससे लोन सस्ते होंगे, दरों में कटौती से भारत में निवेश बढ़ सकता है

Last Updated on September 18, 2025 14:15, PM by Pawan

 

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती की घोषणा के बाद मीडिया के एक सवाल का जवाब दिया।

अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने 17 सितंबर को ब्याज दर में 0.25 की कटौती की है। इससे ये अब 4.00 से 4.25% के बीच आ गई है। दिसंबर 2024 के बाद फेड ने दरों को घटाया है। फेड ने यह कदम मुख्य रूप से लेबर मार्केट में नरमी के कारण उठाया है।

 

फेडरल ओपन मार्केट कमेटी ने इस कटौती के पक्ष में 11-1 से वोट किया। फेड रिजर्व ने कहा, “हाल के संकेत बताते हैं कि इस साल आर्थिक गतिविधियों की वृद्धि धीमी हुई है। रोजगार के लिए डाउन साइड रिस्क बढ़ गए हैं, जिसके चलते नीति में बदलाव किया गया।

पिछले साल तीन बार घटाई थी ब्याज दर

पिछले साल फेड ने लगातार तीन बार- दिसंबर में 0.25%, नवंबर में 0.50% और सितंबर में 0.25% की कटौती की थी। तब से रेट्स 4.25% से 4.50% के बीच थे। सितंबर 2024 की कटौती करीब 4 साल बाद की गई थी।

फेड ने मार्च 2020 के बाद सितंबर 2024 में इंटरेस्ट रेट्स घटाए थे। महंगाई कंट्रोल करने के लिए सेंट्रल बैंक ने मार्च 2022 से जुलाई 2023 के बीच 11 बार ब्याज दरों में इजाफा किया था।

लेबर मार्केट कमजोर दिखा तो घटाई दरें

महंगाई को नियंत्रित करने के लिए पिछले कई महीनों से दरों को घटाया नहीं गया था। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में जॉब ग्रोथ धीमी पड़ने लगी। अब जब लेबर मार्केट कमजोर दिख रहा है, तो अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए फेड रिजर्व को छूट की जरूरत महसूस हुई।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी हाल ही में फेड पर दबाव डाला था कि दरों में और ज्यादा कमी की जानी चाहिए ताकि आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले। हालांकि, फेड स्वतंत्र संस्था है और राजनीतिक दबावों से प्रभावित नहीं होती, लेकिन ऐसे बयान बाजार की चिंताओं को बढ़ाते हैं।

दरों में कटौती से भारत में निवेश बढ़ सकता है

बाजार विश्लेषकों का कहना है कि यह कटौती अमेरिकी शेयर बाजारों के लिए सकारात्मक है, क्योंकि इससे उधार लेना सस्ता हो जाएगा और कंपनियां ज्यादा निवेश कर सकेंगी।

भारत जैसे उभरते बाजारों के लिए भी यह अच्छी खबर हो सकती है, क्योंकि अमेरिकी दरों में कमी से विदेशी निवेश बढ़ सकता है।

महंगाई से लड़ने का शक्तिशाली टूल है पॉलिसी रेट

किसी भी सेंट्रल बैंक के पास पॉलिसी रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है, तो सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है।

पॉलिसी रेट ज्यादा होगी तो बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है।

इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है।

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