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मार्जिन फंडिंग एक लाख करोड़ रुपये के करीब, क्या यह इंडियन मार्केट के लिए चिंता की बात है?

मार्जिन फंडिंग एक लाख करोड़ रुपये के करीब, क्या यह इंडियन मार्केट के लिए चिंता की बात है?

दुनिया के टॉप 10 मार्केट्स में इंडियन मार्केट्स का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। इसके बावजूद घरेलू निवेशकों की उम्मीद कायम है। विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार इंडियन मार्केट्स में बिकवाली कर रहे हैं। लेकिन, बाजार पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा है, जिसका श्रेय घरेलू निवेशकों को जाता है। डोमेस्टिक इनवेस्टर्स डायरेक्ट और इनडायरेक्ट तरीके से शेयरों में इनवेस्ट कर रहे हैं।

टॉप कंपनियों में घरेलू निवेशकों का निवेश FII से ज्यादा

घरेलू निवेशकों के लगातार निवेश करने से टॉप 500 कंपनियों में उनका निवेश फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स (FII) के निवेश से ज्यादा हो गया है। उधर, का निवेश घटकर 13 साल के निचले स्तर पर आ गया है। म्यूचुअल फंड्स में रिकॉर्ड निवेश हो रहा है। SIP से होने वाला निवेश नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। इसमें रिटेल इनवेस्टर्स के रेगुलेर निवेश का बड़ा हाथ है।

मार्जिन फंडिंग के रास्ते भी शेयरों में बढ़ रहा निवेश

मार्जिन फंडिंग के रास्ते से भी रिटेल इनवेस्टर्स का निवेश काफी बढ़ा है। सीएनबीसी की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, इंडियन इनवेस्टर्स के लिवरेज्ड इनवेस्टमेंट का अमाउंट बढ़कर करीब एक लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह अमाउंट पिछले पांच सालों में 13 गुना हो गया है। 2020 के अंत में ब्रोकरेज फर्मों की मार्जिन फंडिंग बुक सिर्फ 7,500 करोड़ रुपये की थी।

गिरावट आने पर मार्जिन फंडिंग में लॉस का ज्यादा खतरा

आम तौर पर मार्जिन फंडिंग का बढ़ना चिंताजनक माना जाता है। इसकी वजह यह है कि मार्केट में गिरावट आने पर इन इनवेस्टर्स को काफी लॉस होने का खतरा होता है। ऐसी स्थिति में उन्हें अपनी पोजीशन लिक्विडेट करनी पड़ती है। इससे मार्केट पर गिरावट का दबाव बढ़ जाता है। लेकिन, अगर इंडियन मार्केट के साइज के लिहाज से देखा जाए तो मार्जिन बुक ज्यादा नहीं लगती है।

ब्रोकरेज फर्मों को मार्जिन फंडिंग में दिख रहा फायदा

ब्रोकरेज फर्म हर हफ्ते एक्सपायरी के दिनों में हाल में आई कमी के बाद मार्जिन फंडिंग अकाउंट्स को बढ़ावा दे रहे हैं। मार्जिन फंडिंग ब्रोकरेज फर्मों के लिए इनकम का स्रोत है। इससे उन्हें न सिर्फ कैश स्टॉक में डिलीवरी पर ब्रोकरेज फीस से कमाई होती है बल्कि उन्हें उस पैसे पर मिलने वाले इंटरेस्ट से भी कमाई होती है, जो वे क्लाइंट्स को उधार देते हैं।

इनवेस्टर्स को फ्यूचर्स पोजीशन के मुकाबले लग रहा बेहतर

इनवेस्टर्स के लिए कनवेंशनल फ्यूचर्स पोजीशन के मुकाबले मार्जिन फंडिंग ज्यादा फायदेमंद है। मार्जिन ट्रेडिंग में इनवेस्टर्स हर महीने अपनी पोजीशन को रोलओवर किए बगैर लंबे समय तक अपनी होल्डिंग बनाए रख सकते हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज, टीसीएस और टाटा मोटर्स जैसी ब्लूचिप स्टॉक्स मार्जिन ट्रेडिंग में सबसे ज्यादा लिवरेज्ड स्टॉक्स हैं। इसके अलावा एचएएल, बीईएल और मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स पर भी निवेशकों ने दांव लगाए हैं।

7.99 फीसदी इंटरेस्ट पर कर्ज दे रही ब्रोकरेज फर्में

मार्जिन फंडिंग को एक उदाहरण की मदद से समझा जा सकता है। मान लीजिए कोई क्लाइंट एचडीएफसी बैंक के शेयरों में 10 लाख रुपये निवेश करना चाहता है। इसके लिए क्लाइंट को 2.5 लाख रुपये का मार्जिन देना होगा, जबकि बोक्रर बाकी 7.5 लाख रुपये कर्ज देगा। इस कर्ज पर इनवेस्टर्स को इंटरेस्ट चुकाना होता है। मिरै एसेट मैनेजमेंट की एमस्टॉक तो हाई वैल्यू ट्रेडर्स को 7.99 फीसदी इंटरेस्ट पर फाइनेंस कर रही है, जबकि रिटेल पार्टिसिपेंट्स को करीब 9 फीसदी तक इंटरेस्ट चुकाना पड़ता है।

इंडियन मार्केट के आकार के लिहाज से 1 लाख करोड़ ज्यादा नहीं

मार्जिन ट्रेडिंग को आम तौर पर बुलिश मार्केट में इस्तेमाल होने वाला टूल माना जाता है। लेकिन, इंडियन इनवेस्टर्स हाई क्वालिटी स्टॉक्स में पोजीशन बनाने के लिए इसका स्ट्रेटेजिक इस्तेमाल कर रहे हैं। एक लाख करोड़ रुपये की मार्जिन ट्रेडिंग बुक पहली नजर में ज्यादा लगती है लेकिन इंडियन मार्केट के आकार को देखते हुए इसे चिंताजनक नहीं कहा जा सकता।

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