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क्रिस वुड ने इंडियन मार्केट्स के लिए इन 2 बड़ी मुश्किलों के बारे में बताया, कहा-यूएस टैरिफ का नहीं पड़ेगा ज्यादा असर

क्रिस वुड ने इंडियन मार्केट्स के लिए इन 2 बड़ी मुश्किलों के बारे में बताया, कहा-यूएस टैरिफ का नहीं पड़ेगा ज्यादा असर

Last Updated on August 18, 2025 9:49, AM by Pawan

क्रिस्टोफर वुड ने अपनी नई रिपोर्ट में इंडिया के बारे में एक खास बात कही है। उन्होंने रिपोर्ट में लिखा है कि वह एशिया-पैसेफिक (जापान को छोड़) रिलेटिव रिटर्न पोर्टफोलियो में इंडिया पर मार्जिन ओवरवेट बनाए रखा है। वुड के इस रुख के कई मायनें हैं। जेफरीज में इक्विटी स्ट्रेटेजी के हेड वुड को स्टॉक मार्केट्स की गहरी समझ है। उनकी ‘ग्रीड एंड फियर’ रिपोर्ट में दुनियाभर में काफी ज्यादा पसंद की जाती है। उन्होंने इंडिया के बारे में यह बात अपनी इसी रिपोर्ट में कही है।

वुड ने कहा है कि Greed & Fear पोर्टफोलियो में पहले से इंडिया का काफी ज्यादा ऐलोकेशन रहता आया है। लेकिन, पिछले 15 सालों में इंडिया के प्रदर्शन में तेज गिरावट आई है। जेफरी के इंडिया रिसर्च का हवाला देते हुए उन्होंने कहा है कि बीते 12 महीनों में MSCI Emerging Market Index के मुकाबले MSCI India का प्रदर्शन 24 पर्सेंटेज प्वाइंट्स कमजोर रहा है। अप्रैल के मध्य से यह 18 पर्सेंटेंज प्वाइंट्स कमजोर है। उन्होंने इसकी वजह इंडियन मार्केट्स की ज्यादा वैल्यूएशन और मार्केट में शेयरों की ज्यादा सप्लाई बताई है।

वुड ने कहा है, “इंडिया के लिए प्रॉब्लम हाई वैल्यूएशन रही है और सबसे अहम शेयरों की ज्यादा सप्लाई है।” Nifty में अभी एक साल के फॉरवर्ड अर्निंग्स के 20.2 गुना पर ट्रेडिंग हो रही है। यह अब भी निफ्टी की लंबी अवधि की औसत वैल्यूएशन से ज्यादा है। हालांकि, अक्टूबर 2021 के मुकाबले कम है, जब निफ्टी की वैल्यूएशन 22.4 गुना पर पहुंच गई थी। इस साल जून में 10.4 अरब डॉलर मूल्य के शेयरों की सप्लाई हुई, जबकि 2024 की दूसरी छमाही में औसत सप्लाई 7.3 अरब डॉलर थी।

उन्होंने इंडिया की तुलना एशिया के दूसरे बाजारों से की है। उन्होंने कहा कि वैल्यूएशन के लिहाज से कोरिया का मार्केट इंडिया से बेहतर हो गया है। उधर, ताइवान में पूंजीगत खर्च बढ़ने में मार्केट में तेजी दिखी है। इससे यह साफ है कि जब इंडियन मार्केट्स का प्रदर्शन कमजोर है तब दूसरे एशियाई बाजारों में तेजी दिख रही है। हालांकि, जेफरी इंडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हर बार कमजोर प्रदर्शन के बाद इंडियन मार्केट्स में तेज उछाल आया है।

अभी के वैल्यूएशन के लिहाज से इमर्जिंग मार्केट्स के मुकाबले इंडियन मार्केट में 10 साल के औसत 63 फीसदी प्रीमियम पर ट्रेडिंग हो रही है। हालांकि, डोमेस्टिक फ्लो यानी घरेलू निवेश से इंडियन मार्केट्स को सपोर्ट मिल रहा है। जुलाई में म्यूचुअल फंड्स की इक्विटी स्कीमों से आने वाला निवेश बढ़कर 6.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यह अक्टूबर 2024 के बाद से सबसे ज्यादा है। 2025 के पहले 7 महीनों में कुल घरेलू निवेश (नॉन-म्यूचुअल फंड इनवेस्टमेंट सहित) औसत 7.2 अरब डॉलर प्रति माह रहा है। 2023 में यह सिर्फ 2.4 अरब डॉलर था। आरबीआई ने इस साल रेपो रेट में एक फीसदी की कमी की है। हालांकि, मई से डॉलर के मुकाबले रुपया 4.2 फीसदी गिरा है।

वुड का मनना है कि अमेरिका के 50 फीसदी टैरिफ लगाने का ज्यादा असर इंडिया पर नहीं पड़ेगा। इससे बाजार में गिरावट आने पर खरीदारी के मौके बनेंगे। उन्होंने ग्रीड एंड फियर में यह भी लिखा है कि अमेरिका को देर-सवरे यह टैरिफ वापस लेना होगा, क्योंकि इंडिया पर ज्यादा टैरिफ अमेरिका के हित में नहीं है। कई दूसरे एक्सपर्ट्स भी ऐसा कह चुके हैं।

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