Last Updated on August 18, 2025 12:50, PM by
देश के दिग्गज उद्योगपति अनिल अंबानी के मामले में SBI और Canara Bank ने जिस तरह के फैसला लिया है वह बैंकों के मनमाने और भेदभावपूर्ण कार्यशैली की तरफ इशारा कर रहा है. देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने रिलायंस कम्युनिकेशन (RCOM) के 5 नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर्स के खिलाफ जारी शो-काउज नोटिस को वापस ले लिया है. इससे पहले 10 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने RCOM लेंडर्स केनरा बैंक ने भी उस फैसले को बिना शर्त के वापस लिया जिसके तहत रिलायंस कम्युनिकेशन के अकाउंट और अनिल अंबानी को FRAUD क्लासिफाई किया गया था.
SBI के मनमाने फैसले का सबूत
हाल के दिनों में SBI की तरफ से अनिल अंबानी और रिलायंस कम्युनिकेशन को लेकर जिस तरह के फैसले लिए गए हैं वह बैंक के
मनमाने और भेदभावपूर्ण फैसलों का उदाहरण है. यह बैंक के कामकाज में ट्रांसपैरेंसी, फेयरनेस और बैंक की निर्णय लेने की प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सीधा-सीधा सवाल खड़े करता है. इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट के ‘Principles of Natural Justice’ की पूरी तरह अनदेखी की गई है.
अनिल अंबानी को अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं मिला
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अनिल अंबानी को अपनी बात और अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया और उनके खिलाफ पक्षपातपूर्ण फैसला लिया गया. उन्हें अपनी बात रखने का मौका तक नहीं मिला और बैंक ने एकतरफा फैसला ले लिया. इससे SBI की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन के इस तरह के फैसलों का रेपुटेशन और फाइनेंशियल कंडिशन पर बड़ा असर होता है.
ज्यूडिशियल, रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क को दरकिनार किया गया
अनिल अंबानी को पर्सनल हियरिंग का मौका नहीं देना फंडामेंटल प्रिंसिपल के खिलाफ है. इससे भी महत्वपूर्ण ये है कि SBI ने ज्यूडिशियल और रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क को पूरी तरह दरकिनार करते हुए यह पक्षपातपूर्ण फैसला लिया है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने कई सारे मामले आए हैं जैसे- SBI Vs राजेश अग्रवाल (2023), T. Takano Vs SEBI (2022), Ankit Bhuwalka Vs IDBI Bank (2025) और मिलिंद पटेल Vs Union Bank of India (2024). इन तमाम मामलों में एक कॉमन बात ये है कि किसी अकाउंट को तब तक FRAUD नहीं घोषित किया जा सकता है जब तक सारे दस्तावेज (कंप्लीज disclosure) इस बात को साबित नहीं करते हों और प्रभावित इंडिविजुअल को अपनी बात करने का मौका जरूर मिलना चाहिए. अनिल अंबानी के मामलों में इन फैसलों की भी अनदेखी की गई.
RBI की गाइडलाइन की भी अनदेखी
इससे इतर अगर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की गाइडलाइन पर करें तो यह साफ कहता है कि बैंकों को सभी प्रिंसिपल को फॉलो करना जरूरी है. इन बाध्यकारी नियमों और निर्देशों की अनदेखी करना यह साफ करता है कि SBI ने रूल-ऑफ लॉ को पूरी तरह दरकिनार करते हुए एक्शन लिया है.
अनिल अंबानी को केनरा बैंक ने FRAUD घोषित किया था
बता दें कि RCOM लेंडर्स के कंसोर्टियम मेंबर Canara Bank ने पूर्व में रिलायंस कम्युनिकेशन के अकाउंट और अनिल अंबानी को FRAUD क्लासिफाई किया था. मामला कोर्ट में पहुंचा तो 10 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने बैंक ने बिना किसी शर्त के फ्रॉड क्लासिफिकेशन को वापस ले लिया. यह इस बात को साबित करता है कि बैंक को पता था कि यह मामला कोर्ट के सामने नहीं टिकेगा. कंसोर्टियम के सिंगल बैंक की तरफ से इस तरह का मनमाना एक्शन बैंक के कामकाज और डिसिजन मेकिंग प्रोसेस तरफ बड़ा इशारा करता है.
SBI ने 5 नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर्स को नोटिस जारी किया था
SBI ने रिलायंस कम्युनिकेशन के 5 नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के खिलाफ जारी नोटिस को वापस ले लिया है. दरअसल इनलोगों का कंपनी के डेली कामकाज में कोई रोल नहीं था. बैंक का यह सलेक्टिव डिसिजन प्रिंसिपल ऑफ फेयरनेस पर सवाल उठाता है. यह बैंक के डिसिजन मेकिंग प्रोसेस की क्रेडिबिलिटी और निष्पक्षता पर सवाल उठाता है.
5 नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर्स की डीटेल
1) Mr. Arun Kumar Purwar, Ex-Chairman, State Bank of India
2) Mr. Raj Narain Murari L. Bhardwaj, Ex- Chairman & Managing Director, LIC
3) Mrs. Manjari Ashok Kacker, Ex-Member, Central Board of Direct Taxes
4) Mr. Deepak Haridev Shourie, Ex-Director, BBC Worldwide Media
5) Prof. Jayaraman Ramachandran, Ex-Professor, Corporate Strategy, IIM Bangalore.
