Last Updated on July 31, 2025 14:58, PM by
बाजार खुलने से पहले कई तरह की आशंकाएं हवा में तैर रही थीं। शुरुआती कारोबार में बाजार ने ट्रंप के टैरिफ पर रिएक्शन दिया। सेंसेक्स में 650 अंक से अधिक गिरावट आई। लेकिन जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ा, सभी आशंकाएं हवा हो गईं। क्यों फुस्स हो गया ट्रंप का टैरिफ…
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
नोमुरा की सोनल वर्मा ने कहा, “25% की ऊंची टैक्स दर शायद अस्थायी है और यह कम हो सकती है। सबसे अच्छा नतीजा यह होगा कि टैक्स 15-20% के बीच रहे। दूसरे देशों के मुकाबले भारत अमेरिका के साथ एक व्यापक ट्रेड डील करने की प्रक्रिया में है। ज्यादातर देशों ने जल्दबाजी में समझौते किए हैं। भारतीय सरकार के सूत्रों ने पहले कहा था कि एक अंतरिम समझौता एक बड़े व्यापार समझौते का हिस्सा होगा, जिसमें 2025 के अंत तक का समय लग सकता है।”
जियोजित के डॉ. वीके विजयकुमार भी इससे सहमत हैं। उन्होंने कहा कि यह टैरिफ भारतीय निर्यात के लिए बहुत बुरी खबर है और इससे भारतीय इकॉनमी के ग्रोथ रेट पर भी बुरा असर पड़ेगा। लेकिन यह ट्रंप की एक आम रणनीति है, जिससे वह भारत से दूसरे क्षेत्रों में बेहतर डील पा सकें और आखिर में टैरिफ की दर 20% या उससे कम पर तय हो जाए। उन्होंने कहा कि निफ्टी के 24500 के सपोर्ट लेवल से नीचे जाने की संभावना नहीं है। निवेशक घरेलू खपत से जुड़े शेयरों में निवेश कर सकते हैं। खासकर, प्राइवेट सेक्टर के बड़े बैंक, टेलीकॉम, कैपिटल गुड्स, सीमेंट, होटल और कुछ ऑटो कंपनियों के शेयर अच्छे हैं, जिन्होंने पहली तिमाही में अच्छा प्रदर्शन किया है।
कम होगा टैरिफ का असर
इस टैरिफ की वजह से ऑटो पार्ट्स, कैपिटल गुड्स, केमिकल, फार्मा, रिफाइनरी, सोलर और टेक्सटाइल के निर्यातकों को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है। नुवामा ने चेतावनी देते हुए कहा कि भारत पर ज्यादा टैरिफ पूंजी के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा कि प्रमोटरों द्वारा भारी बिकवाली और घरेलू निवेशकों के प्रवाह में कमी के बीच एफआईआई का प्रवाह अब बाजार के नतीजों को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि रुपये की कमजोरी से आईटी कंपनियों को फायदा हो सकता है और कम वैल्यूएशन के कारण वे बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं।
एमके की अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा ने कहा कि इस टैरिफ का भारत पर कम असर होगा क्योंकि फाइनेंस, खपत और टेक्नोलॉजी जैसे बड़े सेक्टर इससे अप्रभावित हैं। 25% की दर सबसे खराब स्थिति है और अंतिम द्विपक्षीय समझौता कम टैरिफ दर पर हो सकता है। किसी भी स्थिति में बाजार में गिरावट एक मौका है, जिसमें कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी और इंडस्ट्रियल सेक्टर में निवेश किया जा सकता