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Motor insurance : क्या पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिलाने से आपके कार बीमा प्रीमियम पर पड़ेगा असर ?

Motor insurance : क्या पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिलाने से आपके कार बीमा प्रीमियम पर पड़ेगा असर ?

Last Updated on July 25, 2025 11:49, AM by

Motor insurance : सरकार लगातार पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दे रही है। भारत में E20 ईंधन पर फोकस बना हुआ है। E20 ईंधन 20 फीसदी इथेनॉल और 80 फीसदी पेट्रोल का मिश्रण होता है। E20 ईंधन के इस्तेमाल का उद्देश्य उत्सर्जन में कमी लाना और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करना है। हालांकि, वाहन मालिकों की चिंता यह है कि क्या इसके कारण मोटर बीमा प्रीमियम और खासकर पुराने वाहनों के प्रीमियम बढ़ सकते हैं?

एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसका उत्तर है – कम से कम अभी तक तो नहीं।

बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के मोटर डिस्ट्रिब्यूशन हेड सुभाशीष मजूमदार ने कहा “E20-कम्प्लायंट इंजन 20 फीसदी इथेनॉल और 80 फीसदी गैसोलीन मिले ईंधन पर चलने के लिए डिजाइन किए गए हैं, जो ग्रीन एनर्जी के इस्तेमाल और बेहतर पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में एक बड़ा कदम है।”

उन्होंने आगे कहा ” इंश्योरेंस प्रीमियम, पिछले क्लेम के इतिहास, वाहन के प्रकार और स्थान जैसे फैक्टर्स से जुड़े होते हैं। ईंधन के प्रकार से इसका कोई संबंध नहीं होता। वर्तमान में, ऐसा कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है जिससे यह सिद्ध होता हो कि E20 ईंधन के इस्तेमाल से इन रिस्क फैक्टरों में कोई खास बढ़त या कमी होती है। इसलिए, E20 या पारंपरिक ईंधन का इस्तेमाल करने वाले वाहनों के लिए मोटर बीमा प्रीमियम पर ईंधन के प्रकार का कोई असर नहीं होता।”

पॉलिसीबाज़ार के मोटर बीमा हेड पारस पसरीचा इस बात से सहमत हैं। उन्होंने कहा “आधुनिक वाहनों के अनुकूल E20 ईंधन का व्यापक परीक्षण किया गया है। इन अध्ययनों से पता चलता है कि इथेनॉल का मेटल या मेटल-कोटेड इंजन के कलपुर्जों पर कोई खराब असर नहीं पड़ता है। अधिकांश वाहनों में मेटल या मेटल-कोटेड कलपुर्जे ही लगते हैं। अगर कोई वाहन E20-कंप्लायंट है तो इस मिश्रित ईंधन से इंजन की विश्वसनीयता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। नए मॉडलों को तेजी से E20-कंप्लायंट बनाया जा रहा है”।

पसरीचा ने आगे कहा ” अगर वाहन निर्माता से किसी वाहन को ये प्रामणपत्र मिला हो कि वह ई20 ईंधन कंप्लायंट है तो 20 ईंधन के प्रयोग या प्रचलन से बीमा प्रीमियम में बढ़त होने की संभावना नहीं है।”

इथेनॉल लोअर-ब्लेंड वाले ईंधनों की तुलना में थोड़ा ज़्यादा कोरोसिव (संक्षारक) होता है। लेकिन मजूमदार बताते हैं कि ऐसे प्रभाव आमतौर पर 10-15 साल के इस्तेमाल के बाद ही दिखाई देते हैं। इसलिए,बीमा कंपनियां वर्तमान में E20 के इस्तेमाल के आधार पर जोखिम आकलन या प्रीमियम एडजस्टमेंट नहीं कर रहे हैं।

बीएस-IV मॉडल जैसे पुराने मानकों पर बनाए गए वाहनों को इथेनॉल के संक्षारक गुणों (corrosive properties), उसकी पानी सोखने की प्रवृत्ति, या नियमित पेट्रोल की तुलना में कम एनर्जी आउटपुट को संभालने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था। नतीजतन, इन वाहनों में इंजन के प्रदर्शन संबंधी समस्याएं और स्टार्ट करने में आने वाली कठिनाइयों की शिकायतें रहती थीं।

हालांकि, ये दोनों एक्सपर्ट इंजन प्रोटेक्शन कवर के महत्व पर ज़ोर देते हैं, जो एक एडिशनल प्रोटेक्शन कवर है। ये खासकर बाढ़ के दौरान इंजन में पानी जाने से होने वाले नुकसान से बचाता है। पसरीचा का कहना है “हालाँकि E20 ईंधन स्वयं इंजन को सीधे नुकसान नहीं पहुंचाता है,लेकिन ईंधन के मिलावट होने,गलत ईंधन भरने या इंजन में नमी जाने से उत्पन्न होने वाली कोई भी समस्या ऐसे नुकसान का कारण बन सकती है जो किसी मानक मोटर पॉलिसी के अंतर्गत कवर नहीं होती है।”

उन्होंने आगे कहा कि अगर किसी वाहन को ईंधन से संबंधित समस्याओं के कारण नुकसान होता (जैसे इथेनॉल-मिश्रित ईंधन में नमी या पुराने इंजनों की कॉम्पैटिबिलिटी की समस्या) तो इंजन प्रोटेक्शन ऐड-ऑन, पॉलिसी की शर्तों के मुताबित मरम्मत या रिप्लेसमेंट को कवर कर सकता है। फिलहाल, E20 ईंधन का मोटर बीमा प्रीमियम पर कोई असर नहीं पड़ता दिख रहा है।

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