मेटल सेक्टर में इन दिनों सुस्ती का माहौल है, जबकि धातुओं की कीमतें तीन महीने के उच्चतम स्तर के करीब बनी हुई हैं। इसकी मुख्य वजह वैश्विक मांग में बदलाव और अमेरिकी डॉलर इंडेक्स की कमजोरी मानी जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर इंडेक्स में उतार-चढ़ाव का असर न सिर्फ शेयर बाजार, बल्कि कमोडिटी बाजार, खासकर मेटल्स पर भी साफ नजर आ रहा है।
डॉलर इंडेक्स की भूमिका और असर
अमेरिकी डॉलर इंडेक्स (USDX) दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की ताकत को दर्शाता है। जब डॉलर इंडेक्स मजबूत होता है, तो आमतौर पर कच्चे माल और धातुओं की कीमतों में गिरावट आती है, क्योंकि ये वस्तुएं डॉलर में ही खरीदी-बेची जाती हैं। वहीं, डॉलर की कमजोरी से आमतौर पर इन कमोडिटी की कीमतों को सपोर्ट मिलता है, लेकिन मौजूदा समय में वैश्विक मांग में ठहराव की वजह से मेटल्स की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं।
वैश्विक मांग में बदलाव
कोरोना महामारी के बाद दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई थी, जिससे धातुओं की मांग में उछाल देखा गया था। लेकिन अब कई देशों में आर्थिक विकास दर धीमी पड़ने लगी है। चीन, जो दुनिया का सबसे बड़ा मेटल कंज्यूमर है, वहां निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में सुस्ती आई है। यूरोप और अमेरिका में भी मांग में कमी देखी जा रही है। इसके चलते मेटल्स की कीमतें ऊपरी स्तरों पर टिकने के बावजूद, कारोबार में उत्साह नहीं दिख रहा है।
रुपये की मजबूती और भारतीय बाजार पर असर
हाल ही में डॉलर इंडेक्स में कमजोरी के चलते भारतीय रुपया भी मजबूत हुआ है। बुधवार को रुपया 9 पैसा गिरकर 85.68 रुपए प्रति डॉलर पर बंद हुआ है। रुपया जब मजबूत होता है तो आयातित कच्चे माल की लागत कम हो जाती है, जिससे मेटल सेक्टर को थोड़ी राहत मिलती है। हालांकि, घरेलू मांग कमजोर रहने के कारण कंपनियों की बिक्री और मुनाफे पर दबाव बना हुआ है।
मेटल सेक्टर के शेयरों पर दबाव
डॉलर इंडेक्स में उतार-चढ़ाव और वैश्विक मांग में कमी का सीधा असर मेटल सेक्टर की कंपनियों के शेयरों पर भी पड़ा है। बीते कुछ महीनों में बीएसई मेटल इंडेक्स में करीब 13% तक गिरावट दर्ज की गई है। निवेशक फिलहाल सतर्क हैं और नए निवेश से बच रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक वैश्विक मांग में सुधार नहीं होता और डॉलर इंडेक्स में स्थिरता नहीं आती, तब तक मेटल सेक्टर में सुस्ती बनी रह सकती है। हालांकि, अगर अमेरिका या चीन जैसे बड़े देशों की नीतियों में बदलाव आता है या वैश्विक स्तर पर निवेश बढ़ता है, तो मेटल्स की कीमतों और कारोबार में फिर से तेजी देखी जा सकती है।
