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FIIs की वापसी और मजबूत जीडीपी ग्रोथ से बढ़ा निवेशकों का भरोसा, क्या आगे भी रहेगी तेजी?

FIIs की वापसी और मजबूत जीडीपी ग्रोथ से बढ़ा निवेशकों का भरोसा, क्या आगे भी रहेगी तेजी?

 

FIIs and GDP Growth: भारत की अर्थव्यवस्था एक बार फिर तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही है, और इसी के साथ विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) का भरोसा भी लौटता नजर आ रहा है. वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर 7.4% दर्ज की गई, जो बाजार अनुमानों से कहीं बेहतर रही. यह संकेत है कि भारतीय अर्थव्यवस्था विकास के मजबूत रास्ते पर अग्रसर है, जिससे कॉर्पोरेट आय में भी सकारात्मक सुधार की उम्मीद की जा रही है.

क्या कहते हैं आंकड़े?

विकास के इन आंकड़ों के चलते एफआईआई ने भी अपने रुख में बदलाव किया है. वर्ष 2024 की शुरुआत में जहां लगातार बिकवाली देखने को मिली थी, वहीं अप्रैल और मई में एफआईआई की ओर से जबरदस्त खरीदारी देखने को मिली है. जनवरी 2024 में एफआईआई ने करीब 78,027 करोड़ रुपये की बिकवाली की थी, जो डॉलर इंडेक्स के 111 पर पहुंचने के कारण हुई. हालांकि, उसके बाद बिकवाली की तीव्रता में गिरावट आने लगी और अप्रैल में एफआईआई ने 4,243 करोड़ रुपये की इक्विटी खरीदी.

एक्सपर्ट ने कही ये बात

जियोजित इन्वेस्टमेंट लिमिटेड के मुख्य निवेश रणनीतिकार डॉ. वीके विजय कुमार ने बताया कि मई में 30 तारीख तक एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार एफआईआई ने 18,082 करोड़ रुपये की इक्विटी खरीदी है. उन्होंने बताया कि डॉलर की कमजोरी, अमेरिका और चीन की सुस्त अर्थव्यवस्थाएं, भारत की मजबूत आर्थिक स्थिति, गिरती मुद्रास्फीति और ब्याज दरों में संभावित कटौती जैसे कारक भारतीय बाजार में एफआईआई की वापसी को बढ़ावा दे रहे हैं.

मई के पहले पखवाड़े में एफआईआई ने खास तौर पर ऑटो, ऑटो कंपोनेंट्स, टेलीकॉम और फाइनेंशियल सेक्टर में निवेश को प्राथमिकता दी. यह सेक्टर्स भारत की आर्थिक संरचना और खपत आधारित विकास को दर्शाते हैं.

अलमंड्ज इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के बिक्री प्रमुख केतन विकम ने चेताया कि अगर अमेरिका में बॉन्ड यील्ड में और तेजी आती है, तो इससे वैश्विक इक्विटी बाजारों पर दबाव बढ़ सकता है. हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि एफआईआई का अब तक भारतीय इक्विटी में बना हुआ भरोसा राहत की बात है और जून महीने में भी सकारात्मक रुख बना रह सकता है.

आरबीआई पर टिकी हैं सबकी निगाहें

विश्लेषकों की निगाहें अब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की आगामी मौद्रिक नीति पर टिकी हैं. अगर ब्याज दरों में कटौती होती है, तो इससे बाजार में निवेश और खपत को नई गति मिल सकती है, जिससे मिड-टर्म में शेयर बाजारों को सपोर्ट मिल सकता है.

कुल मिलाकर, भारत की मजबूत आर्थिक बुनियाद, बेहतर मैक्रोइकोनॉमिक इंडिकेटर्स और एफआईआई की वापसी यह संकेत देती है कि देश का पूंजी बाजार आने वाले समय में और मजबूती के साथ आगे बढ़ सकता है.

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