नई दिल्ली: दुनिया की दो सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देशों अमेरिका और चीन में लंबे समय से तनातनी चल रही है। अमेरिका अब चीन की शिपिंग कंपनियों और वहां बने जहाजों से ज्यादा फीस वसूलने की तैयारी में है। इसके लिए उसने एक प्रस्ताव तैयार किया है। इसके मुताबिक अमेरिका के बंदरगाहों पर चीन की शिपिंग कंपनियों और चीन के शिपयार्ड में बनाए गए जहाजों से $10 लाख की भारी-भरकम फीस वसूली जाएगी। इससे भारत का व्यापार भी प्रभावित हो सकता है। पिछले साल दुनिया में जितने भी जहाजों की आपूर्ति की गई, उनमें से आधे चीन में बने थे। दुनिया की 20 सबसे बड़ी शिपिंग कंपनियों के बेड़े में 30% जहाज मेड इन चाइना हैं।यूएस लेबर यूनियंस की मांग पर यूएस ट्रेड रिप्रजेंटेटिव (USTR) ने पिछले साल मार्च में चीन के जहाजों और वहां की सामुद्रिक व्यवस्थाओं की जांच की थी। इसके बाद ही चीनी जहाजों से भारी फीस वसूलने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। इससे भारत के विदेशी व्यापार पर भी असर हो सकता है क्योंकि भारतीय निर्यात काफी हद तक विदेशी जहाजों पर निर्भर है। अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। जानकारों का कहना है कि शिपिंग कंपनियां इसका बोझ शिपर्स पर डाल सकती हैं। दुनिया अभी स्वेज नहर संकट से उबर पाई है और उसके सामने एक और संकट खड़ा हो गया है।
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चीन का दबदबा
1999 में ग्लोबल शिपबिल्डिंग मार्केट में चीन की हिस्सेदारी महज 5 फीसदी थी जो 2023 में बढ़कर 50 फीसदी हो गई। जनवरी 2024 में कमर्शियल वर्ल्ड फ्लीट में चीन की हिस्सेदारी 19 फीसदी से अधिक है। शिपिंग कंटेनर्स के प्रोडक्शन में उसकी हिस्सेदारी 95 फीसदी और इंटरमोडल चेसी की ग्लोबल सप्लाई में 86 फीसदी हिस्सेदारी है। इससे पता चलता है कि ग्लोबल शिपिंग इंडस्ट्री में चीन की क्या हैसियत है।