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मनमोहन सिंह: शेयर बाजार के असली हीरो

मनमोहन सिंह: शेयर बाजार के असली हीरो

देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज हमारे बीच नहीं है। भारतीय शेयर बाजार ने अपना सबसे सुनहरा सफर उनकी ही अगुआई में तय किया था। वे वह नेता थे जिन्होंने भारत को एक नई आर्थिक दिशा दी, और इस बदलाव ने भारतीय शेयर बाजार को भी एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। चाहे वह 1991 का आर्थिक संकट हो या फिर 2004 से 2014 के बीच उनका प्रधानमंत्री का कार्यकाल, भारतीय शेयर बाजार ने इस दौरान न सिर्फ ऐतिहासिक छलांग लगाई, बल्कि यह दुनिया भर के निवेशकों के लिए निवेश का सबसे पसंदीदा जगह भी बन गया।

मनमोहन सिंह 26 दिसंबर को 92 वर्ष की आयु में हमसे विदा हो गए। उनके आर्थिक सुधारों और नीतियों ने भारतीय शेयर बाजार को कैसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, आइए इसे समझते हैं।

1991: भारत की आर्थिक आजादी का दौर

भारत 1991 में एक आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़ा था। यह वह समय था जब भारत को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए बड़े कदम उठाने पड़े। और यह कदम उठाए थे मनमोहन सिंह ने, जो तब भारत के वित्त मंत्री थे। उनकी नीतियों ने भारत के आर्थिक ढांचे को पूरी तरह से बदल दिया। उन्होंने ऐतिहासिक उदारीकरण (लिबरलाइजेशन) की प्रक्रिया शुरू की। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को लाइसेंस राज से मुक्त दिलाई और भारतीय बाजार के दरवाजे प्राइवेट सेक्टर के लिए खोल दिए

उनके वित्त मंत्री के कार्यकाल में लाइसेंस राज को समाप्त किया गया। इंपोर्ट ड्यूटी घटाए गए। इंश्योरेंस जैसे प्रमुख सेक्टर्स में विदेशी निवेश को अनुमति दी गई और रुपये के आंशिक रूप से कनवर्टिबल होने का रास्ता खोला गया। इन सुधारों का नतीजा यह हुआ कि बीएसई सेंसेक्स, जो 1991 में औसतन 1,440 अंको पर था, वह अगले साल 1992 में बढ़कर 4,400 अंकों तक पहुंच गया, जो नए निवेशकों के भारत में बढ़े भरोसो को दिखाता है।

जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इनवेस्टमेंट स्ट्रैटजिस्ट वी के विजयकुमार ने कहा, “सेंसेक्स 1991 में लगभग 1,000 अंक पर था, तब से यह लगभग 780 गुना बढ़ गया है, जो अब 78,000 से ऊपर कारोबार कर रहा है। लॉन्ग टर्म निवेशकों को इसने शानदार रिटर्न दिया। भारत की ग्रोथ स्टोरी को मनमोहन की उदारीकरण की नीति ने रफ्तार दिलाई थी, जो अब तक बरकरार है।”

मनमोहन सिंह के ही कार्यकाल में 1994 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की स्थापना हुई, जिसने भारतीय शेयर बाजार की परिभाषा बदल दी। इसने इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और पारदर्शिता को बढ़ावा दिया, जिससे निवेशकों का भरोसा बढ़ा और बाजार में उनकी अधिक सक्रिय भागीदारी देखने को मिली।”

लिबरलाइजेशन से नए सेक्टर्स की बढ़त

मनमोहन सिंह के सुधारों ने IT, फार्मा, और प्राइवेट बैंकिंग जैसे सेक्टर्स को नई ऊंचाई पर पहुंचाया। इंफोसिस, TCS, HDFC बैंक, और ICICI बैंक जैसे दिग्गज कंपनियां इन्हीं सुधारों की उपज हैं, जो आज बाजार की अग्रणी कंपनियां हैं।

2004-2009: मनमोहन सिंह का बतौर प्रधानमंत्री पहला कार्यकाल (UPA I)

प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह का पहला कार्यकाल भारतीय शेयर बाजार के लिए बूम का दौर था। NSE निफ्टी ने इस अवधि में 135% से अधिक रिटर्न दिया। इस दौरान कई बड़े सुधार किए गए। जैसे टेलीकॉम और इंश्योरेंस में एफडीआई सीमा बढ़ाई गई। इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बड़े निवेश हुए। बंदरगाहों और हवाई अड्डों के निजीकरण ने आर्थिक गतिविधियों को तेज किया। कॉरपोरेट अर्निंग्स में इस दौरान दौरान खूब उछाल देखा गया।

इसका नतीजा यह हुआ कि जो निफ्टी 2004 में 1,438 अंक पर थास वह 2007 तक बढ़कर 6,357 अंकों पर पहुंच गया। वित्त वर्ष 2007 में तो निफ्टी ने 55% का रिटर्न दिया। हालांकि, 2008 के ग्लोबल आर्थिक संकट ने सभी बाजारों को हिला दिया, लेकिन मनमोहन सिंह की अगुआई में भारत ने इसे बेहतर तरीके से संभाला और इस दौरान भारतीय शेयर बाजार में कोई बहुत बड़ी गिरावट नहीं आई। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की कंजर्वेटिव मॉनिटरी पॉलिसी और सरकार के इनसेंटिव पैकेज ने बाजार को स्थिर रखा।

2009-2014: मनमोहन सिंह का बतौर प्रधानमंत्री दूसरा कार्यकाल (UPA II)

मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में भारतीय शेयर बाजार में जबरदस्त तेजी देखने को मिली। मई 2009 में फिर से गठबंधन सरकार बनने के बाद, Nifty ने एक दिन में 17% तक की छलांग लगाई। पूरे यूपीए-2 कार्यकाल में निफ्टी ने कुल 96% का रिटर्न दिया।

लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ा, यूपीए-2 में पॉलिसी पैरालिसिस और भ्रष्टाचार की लगातार आ रही खबरों ने निवेशकों के भरोसे को चोट पहुंचाई। इसके बावजूद, भारत के शेयर बाजार ने अपना लचीलापन दिखाया और 2013-14 के वित्त वर्ष में Nifty ने 31% का जबरदस्त रिटर्न दिया।

मनमोहन सिंह का योगदान केवल भारतीय शेयर बाजार तक सीमित नहीं था। उनके द्वारा किए गए सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को भी काफी मजबूत किया। उनके सुधारों का प्रभाव आज भी हर इंडस्ट्री और सेक्टर में महसूस किया जा सकता है। उनकी नीतियों की वजह से आज भारत दुनिया के सबसे बड़े और सबसे तेजी से बढ़ते शेयर बाजारों में से एक है।

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