इनवेस्टमेंट एडवाइजर निवेशकों को लंबी अवधि के निवेश की सलाह देते हैं। खासकर म्यूचुअल फंड और शेयरों में लंबी अवधि के निवेश पर उनका जोर होता है। लंबी अवधि के लिए निवेश करने पर अच्छा फंड तैयार होने की संभावना बढ़ जाती है। सरकार ने इस साल 23 जुलाई को पेश यूनियन बजट में म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीम के कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में बड़ा बदलाव किया था। क्या थे ये बदलाव और क्या सरकार 1 फरवरी, 2025 को पेश होने वाले बजट में इन नियमों को और अट्रैक्टिव बनाएगी?
जुलाई कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में बदलाव
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने इक्विटी फंडों के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में बदलाव किया था। इक्विटी म्यूचुअल फंड्स की यूनिट्स को 12 महीने से पहले बेचने पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स लगता है। जुलाई में वित्त मंत्री ने शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स को 15 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी करने का ऐलान किया था। इक्विटी म्यूचुअल फंड्स की यूनिट्स को 12 महीने से ज्यादा समय के बाद बेचने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स लगता है। वित्तमंत्री ने जुलाई में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फीसदी कर दिया।
सरकार लंबी अवधि के निवेश को बढ़ावा देना चाहती है
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस जुलाई में सरकार के ऐलान से यह संकेत मिलता है कि सरकार इक्विटी म्यूचुअल फंडों में लंबी अवधि के निवेश को बढ़ावा देना चाहती है। इसलिए सरकार ने लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस पर 12.5 फीसदी टैक्स तय किया है, जब शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स को बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार इक्विटी फंड पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स को 12.5 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर देना चाहिए। इससे इनवेस्टर्स लंबी अवधि के लिए म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीम में निवेश के लिए प्रोत्साहित होंगे।
बढ़ रही इक्विटी म्यूचुअल फंड में दिलचस्पी
म्यूचुअल फंड की स्कीमों में निवेशकों की दिलचस्पी तेजी से बढ़ रही है। इससे म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री का एसेट अंडर मैनेजमेंट 68 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। करोड़ों इनवेस्टर्स सिप के जरिए म्यूचुअल फंड्स की इक्विटी स्कीमों में निवेश कर रहे हैं। यहां तक कि लोगों ने बैंकों के फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसे रखने की जगह म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों में लगाना शुरू कर दिया है। सिप से निवेशकों को छोटे अमाउंट से रेगुलेर निवेश करने की सुविधा मिलती है। इससे निवेश में अनुशासन बना रहता है। लंबी अवधि में इससे बड़ा फंड तैयार हो जाता है।
